कहाँ हो? खो गए हो? पश्चिमा अपने आसमाके लिए रंग बिखेरती देखो, देखो, नदियामे भरे सारे रंग आसमाँ के, किनारेपे रुकी हूँ कबसे, चुनर बेरंग है कबसे, उन्डेलो भरके गागर मुझपे!
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चूँकि वैदिक धर्म को (खासकर पश्चिमा जगत में) बाहर से आए आर्यों का धर्म माना गया है, इसमें आर्य और हिन्द-आर्य जाति के बारे में कई जानकारियां मिलती हैं ।
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कहाँ हो? खो गए हो? अपने आसमाँ के लिए, पश्चिमा रंग बिखेरती देखो, देखो, नदियामे भरे सारे रंग आसमाँ के, किनारेपे रुकी हूँ कबसे, चुनर बेरंग है कबसे, उन्डेलो भरके गागर मुझपे!
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यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों में ही नहीं, बल्कि स्वयं पश्चिमा यूरोप और अमेरिका में भी मीडिया साक्षरता की दरकार निरन्तर बढ़ती ही जा रही है।
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प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगो को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसके बाद सारस्वत,महियल,सरयूपारी,मैथिल,चितपावन,कन्नड़ आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इन लोगो से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गए.मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमा तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गए.