योग समाधि ' में उनके व्यंग्य का निशाना तथाकथित पाखंडी जन हैं जिन्हें वे आँखें मूंदे पागुर करते लेटे हुए भैंसे के रूप में देखते हैं।
32.
में भी सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख है: “फिर सूअर जो चिरे खुर का होता है, परंतु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।
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इस अवस्था में स्वप्न द्रष्टा पूर्वोक्त चेतना द्वारा जुटायी सामग्री का पुनः उपभोग करता है, जैसे घास खाने वाले पशु पागुर करते हुए कए हुए को फिर खाकर आनंद पाता है।
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इस अवस्था में स्वप्न द्रष्टा पूर्वोक्त चेतना द्वारा जुटायी सामग्री का पुनः उपभोग करता है, जैसे घास खाने वाले पशु पागुर करते हुए कए हुए को फिर खाकर आनंद पाता है।
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मिमियाने की मुद्रा में उनके सामने खड़ी है जो सिर्फ ' पागुर ' कर सकती है इससे ज्यादा करने पर उसे अपने पैरों में ' छान ' पड़ने का डर है.
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पर वह जुगाली (पागुर) नहीं करता, वह भी तुम्हारे लिये अपवित्र है, तुम उनका मांस न खाना, उनकी लााशों को न छूना, वह तुम्हारे लिए अपवित्र हैं।
37.
तुम्हारे चांदी के माँगटीका, हँसूली फिर लौटा लेगा तुम्हारा सुकल महाजन से तुम्हारी गईया फिर से वापस गोहाल में पागुर करेगी और तुम्हारा छोटका जरूर नाम लिखा लेगा इस बार स्कूल में
38.
इस पागुर को फिर वापस मुंह में लाया जाता है, और जुगाली करके यानी उसे धीरे-धीरे चबा कर पूरी तरह लार के साथ मिला दिया जाता है आहार कणों को छोटा कर दिया जाता है.
39.
इस पागुर को फिर वापस मुंह में लाया जाता है, और जुगाली करके यानी उसे धीरे-धीरे चबा कर पूरी तरह लार के साथ मिला दिया जाता है आहार कणों को छोटा कर दिया जाता है.
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इस पागुर को फिर वापस मुंह में लाया जाता है, और जुगाली करके यानी उसे धीरे-धीरे चबा कर पूरी तरह लार के साथ मिला दिया जाता है आहार कणों को छोटा कर दिया जाता है.