विचारा छायिकिल छे से जा रहा था कि पीछे छे बछ ने टक्कर मार दी. कोई ‘ लकड़-ड्राईवर ' था, क्योंकि वह बछ तो चार छालों छे चला रहा था ; लेकिन उछके पाछ लाईछेन्छ नहीं था.
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पाछ मिनट बाद ही सर्किट-हाउस के पोर्च में रुकी गाड़ी रूम नम्बर … में घुस गईं मै ' म यह कहते हुये दस बजे आ जाईये और हां शादी में शाम पांच बजे जाना है तब तक मार्बल-राक्स घूमना था.
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पाछ नहीं राखी रण में, बैर्यां री खात खिडावण में, जद याद करूँ हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै, सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै, पण आज बिलखतो देखूं हूँ, जद राज कंवर नै रोटी नै, तो क्षात्र-
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देर तक दूर तक जब कुछ नहीं सूझा तो अधिकारियों ने राज्य के उच्चतम अधिकारी से संपर्क किया और गहन छानबीन के बाद पाया गया, मामला भिक्खु के चीवर सा बरगद की लंबी बरोहों से उलझ गया है हार कर पाछ कर अंततः तय हुआ दिल्ली से पूछा जाय
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यह बात सही है मेरे को भी अविवा बीमा कंपनी ने धोखा दिया मुझे बताया की एक हज़ार महीने जमा करने पेर पाछ साल मे आपको पंचानबे हज़ार मिलेंगे लेकिन जो काग़ज़ात दिए उसके हिसाब से दश साल मे मिलेंगे आप बताए की ऐसे धोखे बाज़ो के साथ क्या किया जाए
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एक मंत्री महोदय वीरभद्र सिंह ने तो अन्ना आन्दोलनकारियों को डफलीबाज़ तक कह डाला और इनके जनसमर्थन को भारत की १२१ करोड़ की आबादी में महत्त्वहीन करार दिया. यह बात अलग है की वीरभद्र जी को देश की आबादी तक का नहीं था पता...पूछ पाछ कर बोले... तो भी १२१ मिलियन कह बैठे.
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“ गेले गेले सांप जाए, सुसराजी थांको बाप जाए ” “ गेले गेले हिरनी जाए, सुसराजी थांकी परनी जाए ” “ चूल्हा पाचे फिर उन्दरी, सासु जाने बहन सुंदरी ” “ चूल्हा पाछ पांच पछेठा, सासू जाने म्हारा बेटा ” इनमे से कुछ शब्दों के अर्थ तो मुझ भी नहीं मालूम...
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अब तुम्ही देखो-अब गोपी के पास अगर डिग्री है तो वह बी. ए. कहलाएगा ही. लेकिन, परीक्षा में उछकी जगह कोई और बैठा था, वह तो बी. ए. पाछ नहीं हुआ न! बोलो, अब वह ‘ लकड़-बी. ए. ' नहीं तो क्या है? ” यह उत्तर उसने मुझे सीधी आंखो से देखते हुए दिया था-जिनमें मेरे लिए तरस के भाव थे!