इसलिए, जहाँ समूचे पश्चिम में अधार्मिक, आधुनिक, वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण रहा है वहीं भारत में प्रभावी उदार हिन्दू मानस की मुख्य विशेषता पारलौकिकता रही है जिसकी प्रमुख अभिव्यक्ति उस नैतिक दृष्टिकोण में होती है जो वह औरतों के बारे में अपनाता है।
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इस पर गंभीरता से सोचा जाना है कि देश का हर आदमी देवता नहीं है, वह दुनियादार भी है | सेकुलरिज्म या धर्म निरपेक्षता का एक अर्थ पारलौकिकता से परे इहलौकिकता भी है | अब वह अपने महात्माओं के विपरीत धर्मों की साजिशें और उनकी राजनीतिक रणनीतियां भी बखूबी
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इस काल में विज्ञानेतर विचारधारा के समर्थक यह समझ चुके थे कि अगर विज्ञान का प्रभाव बढ़ता रहा प्रकृति की घटनाओं को कार्य-कारण सम्बन्ध और प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर विवेचित जाता रहा तो अन्धविश्वास और पारलौकिकता की अवधारणा को विज्ञान से चुनौती मिलनी ही है और इससे उनके द्वारा अर्थोपार्जन एवं राज्य सत्ता के संरक्षण हेतु फैलाये गए मायावाद को हानि हो सकती है।
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इस काल में विज्ञान ेतर विचारधारा के समर्थक यह समझ चुके थे कि अगर विज्ञान का प्रभाव बढ़ता रहा प्रकृति की घटनाओं को कार्य-कारण सम्बन्ध और प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर विवेचित जाता रहा तो अन्धविश्वास और पारलौकिकता की अवधारणा को विज्ञान से चुनौती मिलनी ही है और इससे उनके द्वारा अर्थोपार्जन एवं राज्य सत्ता के संरक्षण हेतु फैलाये गए मायावाद को हानि हो सकती है।
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इस काल में विज्ञान ेतर विचारधारा के समर्थक यह समझ चुके थे कि अगर विज्ञान का प्रभाव बढ़ता रहा प्रकृति की घटनाओं को कार्य-कारण सम्बन्ध और प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर विवेचित जाता रहा तो अन्धविश्वास और पारलौकिकता की अवधारणा को विज्ञान से चुनौती मिलनी ही है और इससे उनके द्वारा अर्थोपार्जन एवं राज्य सत्ता के संरक्षण हेतु फैलाये गए मायावाद को हानि हो सकती है।
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तब भौतिक जीवन को जीने के लघु सत्य के साथ आध्यात्मिकता जीवन के बड़े लक्ष्य (विराट सत्य) को साधने का यत्न करना अनिवार्य माना गया था! इस हिसाब से देखा जाये तो उन दिनों के ज्ञान में पारलौकिकता, इहलौकिकता पर भारी थी / महत्वपूर्ण मानी गई थी! उन दिनों सच्चे ज्ञान का मतलब ब्रह्म ज्ञान माना गया और जो इस ज्ञान को अपनी क्षमता / योग्यता से पा सके उसे ब्राह्मण हो जाना था!