पितृवंशीय परिवार नाभिकीय या संयुक्त दोनों में से कोई भी हो सकता है, परन्तु मातृवंशीय परिवार अधिकांशत: संयुक्त होता है।
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(1) पितृवंशीय-इसमें वंश का र्निधारण या गणना केवल पिता या दादा जैसे पुरूष संबंधियों से संबंध स्थापित करके किया जाता है।
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(3) द्विवंशीय-यह भी एक पक्षीय वंश का ही एक रूप है जिसमें मातृवंशीय एवं पितृवंशीय के गुण मिले रहते है।
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कई पितृवंशीय कबीलों में भी नर और नारी का दर्जा लगभग समान है, तथापि अधिकांश कबीलों में पुरुष की अपेक्षा उसका दर्जा हीन है।
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कई पितृवंशीय कबीलों में भी नर और नारी का दर्जा लगभग समान है, तथापि अधिकांश कबीलों में पुरुष की अपेक्षा उसका दर्जा हीन है।
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पितृवंशीय व्यवस्था किसी उस सामाजिक प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति पारिवारिक रूप से अपने पिता और उसके पितृवंश का भाग माना जाता है।
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वर्तमान समय के हमारे पितृवंशीय रिवाज हाल ही के आविष्कार हैं और पारिवारिक प्रथाओं के बारे में हमारी मूल विधि मातृविधि है जो अभी पितृविधि हैं.
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मातृवंशीय और मातृस्थानीय कबीलों में भी शासक वर्ग पुरुष है, किंतु नारी के अधिकारों तथा प्रतिष्ठा की दृष्टि से पितृवंशीय और पितृस्थानीय कबीलों की अपेक्षा इनकी स्थिति प्राय:
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मातृवंशीय और मातृस्थानीय कबीलों में भी शासक वर्ग पुरुष है, किंतु नारी के अधिकारों तथा प्रतिष्ठा की दृष्टि से पितृवंशीय और पितृस्थानीय कबीलों की अपेक्षा इनकी स्थिति प्राय:
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इसके भी दो रूप हैं:-(1) पितृवंशीय-इसमें वंश का र्निधारण या गणना केवल पिता या दादा जैसे पुरूष संबंधियों से संबंध स्थापित करके किया जाता है।