भारतीय पुर्नजागरण एवं नारी पुनरूत्थान भारतीय पुर्नजागरण एवं नारी पुनरूत्थान किसी भी राष्ट्र का उत्थान तथा पतन उस राष्ट्र की महिलाओं की स्थिति पर काफी अंशों पर निर्भर करता है।
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उन्होने अधिवक्ता परिषद के सदस्यों को आव्हान करते हुए कहा कि समाज के नवनिर्माण और पुर्नजागरण के कार्य में यथाशक्ति अपना सहयोग दें और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपना योगदान दें।
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राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण सड़कों से नहीं बल्कि चारित्रिक उत्थान एवं सांस्कृतिक पुर्नजागरण से होता है और पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में यह दोनो चीजें ही गायब रही।
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राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण सड़कों से नहीं बल्कि चारित्रिक उत्थान एवं सांस्कृतिक पुर्नजागरण से होता है और पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में यह दोनो चीजें ही गायब रही।
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उन्हों ने इस वास्तविकता को स्पष्ट किया कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने धर्म के पुर्नजागरण, समाज सुधार और लोगों को अत्याचारी व क्रूर शासकों के चंगुल से छुड़ाने के लिए आंदोलन छेड़ा था।
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इस महान कार्य के प्रणेताओं के रूप में राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, कर्नल एच0एस आलकाट, एनी बेसेंट, स्वामी विवेकानन्द, महादेव गोविन्द रानाडे आदि समाज सुधारकों को भारतीय पुर्नजागरण की धूरी कहा जा सकता है।
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दादा साहब फालके ने भले ही क्राइस्ट के जीवन पर बनी फिल्म से प्रेरणा लेकर भारतीय पुर्नजागरण के उस युग में चित्रपट पर कृष्ण का जीवन सजीव करने की कल्पना की किन्तु आर्थिक अभावों के चलते जब वे ‘
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1857 की क्रान्ति में रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल आदि ने वीरता का आदशZ प्रस्तुत किया, वहीं भारतीय पुर्नजागरण काल में महिलाओं ने राजनैतिक व सामाजिक चेतना से प्रेरणा पाकर राश्ट्रीय आन्दोलन तथा समाज सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
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बिहार में चुनाव लड़ाकर जय महाभारत पार्टी की दस्तक दे चुके श्री अनन्त विश्व देवा महाराज का कहना है कि देश में कृषि अधारित जीवन संस्कृति के विकास हेतु कश्मीर से कन्याकुमारी तक अखण्ड भारत मे संस्कृति, संस्कृत और सुचिता के माध्यम से विश्व महागुरू के रूप में आर्यखण्ड भारत भूमि को स्थापित करने के लिये राजनैतिक पुर्नजागरण हेतु जय महाभारत पार्टी का उदय हुआ है।
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मुहम्मद लिंसल, बस्ट्रिया में इस्लामी पुर्नजागरण संस्था के प्रमुख हैं वे युरोप में इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन के प्रभाव के शीर्षक के अंतर्गत अपने एक लेख में लिखते हैं कि निश्चित रूप से इमाम ख़ुमैनी की इस्लामी क्रांति ने न केवल यह कि युरोप में इस्लाम की नयी छवि पेश की बल्कि उन की क्रांति ने गैर मुस्लिमों के जीवन में भी धार्मिक रंग भर दिये ।