डायरी बताती है कि जैसे ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में 1942 और तेभागा किसान आन्दोलन के किसानों को पुलिस डायरी में अपराधी, गुंडे, बलवाई बताए जाते थ्ो उसी तरह इस बार आंदोलनकारी किसानों के लिए माओवादी, आतंकवादी, सांप्रदायिक अपराधी आदि शब्द दर्ज किए गए।
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पुलिस डायरी को ध्यान से पढ़ने पर पता चलता है कि पुलिस बल का जमा होना सुबह सवेरे से ही शुरू हो गया था किसानों द्वारा आंदोलन के लिए जमा होने के कुछ ही देर बाद हिंसा भड़क उठी लेकिन किसानों द्वारा किया गया विरोध बहुत कमजोर था।
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लेकिन जब मेरे पास नवरूणा केस की पुलिस डायरी आई और उसे मैंने देखा तब मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुजफ्फरपुर पुलिस ने अगर इस केस को प्रेम प्रसंग के दायरे में रखकर नही देखा होता तो अपनों की चहेती नवरूणा अपने घर में होती. उसका बचपन, उसके सपने सुरक्षित रहते! वह आज़ाद रहती!
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अग्रिम जमानत के आवेदन में भी न्यायाधीशों द्वारा पुलिस डायरी का अवलोकन किया जाता है और बिना भेंट के पुलिस यह डायरी भी समय पर प्रस्तुत नहीं करती है | कई बार तो इन अग्रिम जमानत के आवेदनों के निपटान में आश्चर्यजनक रूप से महीनों तक का समय लगा दिया जाता है जिससे आवेदन प्रस्तुत करने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है | जमानत के आवेदन का निपटान प्रार्थी की प्रस्तुति के आधार पर होना चाहिए यदि पुलिस समय पर डायरी पेश नहीं करती है तो इस दोष के लिए सम्बंधित व्यक्ति दण्डित नहीं होना चाहिए |