| 31. | (10) पुष्पिका एवं (11) पुष्पचूला में अनेक स्त्री पुरुषों की धार्मिक साधना, स्वर्गसुखों और महावीर की वंदना के लिये आगमन का वर्णन है।
|
| 32. | इसमें सुन्दर और उत्तरकाण्डों के ही कुछ अंश बचे हैं और उत्तरकाण्ड का भी अन्तिम अंश न होने के कारण पुष्पिका नहीं रह गयी है।
|
| 33. | इसमें सुन्दर और उत्तरकाण्डों के ही कुछ अंश बचे हैं और उत्तरकाण्ड का भी अन्तिम अंश न होने के कारण पुष्पिका नहीं रह गयी है।
|
| 34. | आगे के पन्ने उपलब्ध नहीं है. इस तरह से केवल पुष्पिका पृष्ठ ही नहींबल्कि राम, बलिराम, बुद्ध और कलकी अवतार के भी चित्र उपलब्ध नहीं है.
|
| 35. | विस्तार से तो इन सब पर आगे चलकर इसी पुष्पिका में अथवा आवश्यकता महसूस हुई तो अगली पुष्पिका में विवेचन-व्याख्या सत्प्रमाणों सहित जानने-देखने को मिलेगा ।
|
| 36. | विस्तार से तो इन सब पर आगे चलकर इसी पुष्पिका में अथवा आवश्यकता महसूस हुई तो अगली पुष्पिका में विवेचन-व्याख्या सत्प्रमाणों सहित जानने-देखने को मिलेगा ।
|
| 37. | इनमें से एक पांडुलिपि के किष्किंधा कांड की पुष्पिका पर तत्कालीन नेपाल नरेश गांगेय देव और लिपिकार तीरमुक्ति निवासी कायस्थ पंडित गोपति का नाम अंकित है।
|
| 38. | पोथी में पुष्पिका पृष्ठ न होने पर भी यह कहा जा सकता है कि चित्रोंके आधार पर इस पोथी का काल १५वीं शदी का मध्यकाल होना चाहिए.
|
| 39. | साहित्य दर्पण के प्रथम परिच्छेद की पुष्पिका में उन्होंने जो विवरण दिया है उसके आधार पर उनके पिता का नाम चंद्रशेखर और पितामह का नाम नारायणदास था।
|
| 40. | साहित्य दर्पण के प्रथम परिच्छेद की पुष्पिका में उन्होंने जो विवरण दिया है उसके आधार पर उनके पिता का नाम चंद्रशेखर और पितामह का नाम नारायणदास था।
|