प्रत्येक समय इसे एक अलग नाम से जाना जाता है-प्रातःकाल में (), दोपहर में (), और सायंकाल में(). शिवप्रसाद भट्टाचार्य इसे “हिंदुओं की पूजन पद्धति संबंधी संहिता” के रूप में परिभाषित करते हैं.
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उन्होंने अपने सचिव सन्त जेरोम को चुना, जिन्होंने प्रचलित लातीनी बाईबिल समर्पित किया, गिरजाघर अब “लातीन में सोचने एवं पूजा के लिए प्रतिबद्ध” था.[41] लैटिन ने गिरजाघर के रोमन अनुष्ठान में पूजन पद्धति की भाषा के रूप में अपनी भूमिका जारी रखी और आज के दिन भी गिरजाघर की आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयुक्त है.