हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के तमाम पैग़म्बर मासूम हैं यानी अपनी पूरी ज़िन्दगी में चाहे वह बेसत से पहले की ज़िन्दगी हो या बाद की गुनाह, ख़ता व ग़लती से अल्लाह की तईद के ज़रिये महफ़ूज़ रहते हैं।
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समस्या तब शुरू होती है जब हम पूर्ण रूप से समझदार और विवेकशील होने के बाद भी इस गुण को नहीं छोड़ पाते और बचपन से अमल में लाये गए इस गुण को अपनी पूरी ज़िन्दगी में उतार लेते है.
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एक बार जब इस “ प्रस्तुति, परिवर्धन, तर्क-वितर्क और निष्कर्ष ” (लेख के इस ढाँचे में चार प्रमुख हिस्से होते थे) की ताकत से परीक्षा पास कर लेते तो आप उसे किनारे फेंक देते और दुबारा अपनी पूरी ज़िन्दगी में इस्तेमाल नहीं करते.
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मगर पूरी ज़िन्दगी में कुमार जी के नाम पर एक भी, सीधे-सटक शब्दों में कहा जाए तो, एक भी ' लफ़ड़ा ' नहीं. कुमार जी कहते-“ मेरी ज़िन्दगी में तीन लड़कियां आईं. दो मराठी और एक दिल्ली की पंजाबी. भानु ने बाज़ी मार ली. ”
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क़ानून बनाने वाले की पहली शर्त यह है कि वह जिनके लियह क़ानून बनाना चाहता है उन की रूहानी और जिस्मानी ख़ुसूसियात और ख़्वाहिशात वग़ैरह से आगाह हो, हम जानते हैं कि ज़ाते ख़ुदा के अलावा कोई और नही जो इंसान के मुस्तक़बिल में होने वाले उन हादसों से आगाह हो, जो समाज को एक मुश्किल में तब्दील कर देते हैं लिहाज़ा सिर्फ़ उसी को हक़ है कि इंसान के लिये ऐसा क़ानून बना यह जो उसकी पूरी ज़िन्दगी में फ़ायदे मंद साबित हो और उसे नाबूदी से निजात दे।