विभूति नारायण राय अगर समाज के दुश्मन हैं, हिंदी के शत्रु हैं, शिक्षा जगत के तानाशाह हैं तो साफ-सुथरी हिंदी में यह बात कहने की पूरी सामर्थ्य है, उसके लिए नये विद्रूप और बीमार शब्दों को गढ़ने की आवश्यकता नहीं है।
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एक विराट् शक्ति मेरी रक्षा कर रही है, मुझे प्रसन्न रखने की चेष्टा में अपनी पूरी सामर्थ्य लगा रही है, पर, यह अचला, उद्भ्रान्त, रहस्यमयी प्रकृति कितनी महती शक्ति होगी, जो एक ही अनिर्दिष्टपूर्व उपेक्षापूर्ण हँसी में उसकी सारी शान धूल में मिला देती है!