() नहीं है तो मैं अपने आप को बार जहाँ मैं एक पूर्ण त्याग के लिए एक स्पष्ट अर्थ है कि मैं अकेला और एक उपस्थिति की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर रहा हूँ (प्रतीक्षा, आप सुनिश्चित हैं?) की याद दिलाने रखना और भगवान को आत्मसमर्पण, प्यार, विश्वास कितना मुश्किल है कि हो सकता है?
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इस उपनिषद में जीवात्मा एवं परमात्मा के मध्य संबंध को महत्वपूर्ण तरह से स्पष्ट किया गया है यहां पर आत्मा के ब्रह्म से मिलने और उसी में समा जाने के तथ्य को व्यक्त करते हुए ऋषि कहते हैं की स्वयं को परब्रह्म का अंश अनुभव करने पर भी आत्मा उसे सहज रूप से देख नहीं पाती है अभी भी उस पर आवरण तो व्याप्त ही होता है परंतु मोह का पूर्ण त्याग हो जाने पर ही आत्मा परमात्मा को प्राप्त कर पाती है.