| 31. | इसी तरह यजुर्वेद में भी स्वस्तिक की व्यापक भावना मिलती है:-' स्वस्ति नः इन्द्रों वृद्ध श्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्व वेदा।
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| 32. | वैदिक काल में ऋचाएं रचने वाले ऋषिगण सरस्वती के किनारे लेटकर गाय चराते हुए सिर्फ़ ऊषा और पूषा की ही वन्दना नहीं करते थे।
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| 33. | पांच ग्यानेन्द्रिया होती हैं । इडा । पिंगला । सुष्मणा । गान्धारी । गजजिह्या । पूषा । यषा । अलम्बुषा । कुहू । शंखिनी ।
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| 34. | अधिकतर वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि पूषा जीवन तथा जगत के उन सभी भागों में प्रकाश लातें हैं जहां इसकी आवश्यकता होती है ।
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| 35. | शिव ने पूषा को दांत, भग की आंखें तथा सविता को बांहें प्रदान कर दीं तथा जगत एक बार फिर से सुस्थिर हो गया।
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| 36. | अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु 12 आदित्य हैं।
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| 37. | स्वस्ति न ” का अर्थ है हमारा मंगल करें-बज्र्श्रवा इन्द्र, पूषा, समस्त नक्षत्र गण व ब्रहस्पति-वेदों में मूलतः गणेश का कोई वर्णन नहीं है।
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| 38. | ऋग्वेद 10-184-1 अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग (स्त्री की योनि) दें, रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए ।
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| 39. | जब पूषा नामक सूर्य के दांत टूट गए और भाग नामक सूर्य के नेत्र फूट गए थी तब अश्विनी कुमारों ने ही उनकी शल्य चिकित्सा की थी।
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| 40. | लाजा-होम में वधू अर्यमा, वरुण, पूषा और अग्नि देवताओं के लिए अग्नि में खीलों की आहुति देती थी, जिससे कि उसका दांपत्य जीवन सुखमय हो।
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