पेरेस्त्रोइका (समाज का पुनर्गठन) और ग्लासनोस्ट (पारदर्शिता) के विचारों के जरिए गोर्बाचेव ने साम्यवाद के ढ़ांचे में बदलाव लाने की कोशिश की थी.
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1980 के दशक के सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने ग्लासनोश्त (खुलेपन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्निर्माण) की नीतियां अपनाईं और पश्चिमी देशों की तरफ मेलमिलाप का हाथ बढ़ाया।
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मिखाइल गोर्बाच्योव ही वह शख्स है जिसने ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका (खुलापन और सुधार) नामक रूसी शब्दों का इस्तेमाल कर महाशक्ति सोवियत संघ को बिखरने के लिए मजबूर कर दिया।
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बीते वर्षों से इस तरह के शब्दों के उदाहरण ढूँढे जाएँ तो मिखाइल गोर्वाच्योफ़ के ज़माने के ग्लास्नोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्निर्माण) हमारा ध्यान तुरंत आकर्षित करते हैं.
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गोरबाचोव ने ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका के नाम से पूंजीवादी सुधार लागू किये, जिससे आगे चलकर येल्तसिन ने सोवियत राज्य का अंतिम विनाश किया और उसके स्थान पर संपूर्णतया पूंजीवादी लोकतंत्र की स्थापना की।
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रूस, गोर्बाचोव, ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका, चेकेस्लोवाकिया, पोलैंड, चीन, बंगाल और केरल सरकार की नीतियों और कार्यों पर हमारी कितनी गरमागरम बहसें और बातचीत हुई हैं, कह नहीं सकता।
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अब तो आप भी मानेंगे न ब्लॉगिंग को ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका का झंडा उठाने वाले की ज़रूरत है न कि अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति जैसे लोगों कि जिनके बारे में कहा जा सकता है...
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अंतिम सोवियत नेता मिख़ाइल गोरबाचोफ़ ने देश में ग्लास्नोस्त (glasnost) नामक राजनैतिक खुलेपन की नई नीति और पेरेस्त्रोइका (perestroika) नामक आर्थिक ढाँचे को बदलने की नीति के अंतर्गत सुधार करने की कोशिश की लेकिन विफल रहे।
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अमेरिका से लौटकर जब उन्होंने देश के पूर्व तटवर्ती क्षेत्र का दौरा किया तो वह इस सुधारवादी ‘ पेरेस्त्रोइका ' से क्षुब्ध हो उठे और साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की नई पूंजीवादी व्यवस्था से भी उनका मोहभंग हुआ।
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‘ पेरेस्त्रोइका ' ने इनके साहित्य से प्रतिबंध हटा कर इन्हें रूस में लौटने का न्योता दिया और इस तरह से सोल्झनित्सिन लगभग 20 साल बाद अपने देश लौट सके जब रूस आधिकारिक तौर पर साम्यवादी से मुक्ति पा चुका था।