[125] पिशाच उपसंस्कृति में सक्रिय पैशाचिकता में रक्त से संबंधित पैशाचिकता, जिसे आम तौर पर रक्तिम पैशाचिकता कहा जाता है तथा मानसिक पैशाचिकता अथवा अनुमानित ऊर्जा पर अपना भरण-पोषण करने के उल्लेख शामिल हैं.
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[125] पिशाच उपसंस्कृति में सक्रिय पैशाचिकता में रक्त से संबंधित पैशाचिकता, जिसे आम तौर पर रक्तिम पैशाचिकता कहा जाता है तथा मानसिक पैशाचिकता अथवा अनुमानित ऊर्जा पर अपना भरण-पोषण करने के उल्लेख शामिल हैं.
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[125] पिशाच उपसंस्कृति में सक्रिय पैशाचिकता में रक्त से संबंधित पैशाचिकता, जिसे आम तौर पर रक्तिम पैशाचिकता कहा जाता है तथा मानसिक पैशाचिकता अथवा अनुमानित ऊर्जा पर अपना भरण-पोषण करने के उल्लेख शामिल हैं.
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ऐसा लगता है कि इस देश में अब उन लोगों का ही वर्चस्व बढ़ता जा रहा है जिनके लिए नैतिकता, निष्ठा, आस्था और अस्मिता के बजाय वाचालता, उच्छृंखलता, दुष्टता और पैशाचिकता का अधिक महत्व है।
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उत्तम विचार, अच्छी प्रस्तुति इस देश में अब उन लोगों का ही वर्चस्व बढ़ता जा रहा है जिनके लिए नैतिकता, निष्ठा, आस्था और अस्मिता के बजाय वाचालता, उच्छृंखलता, दुष्टता और पैशाचिकता का अधिक महत्व है।
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दुर्भाग्य से एक जयचन्द द्वारा सशस्त्र क्रान्ति की योजना का भण्डाफोड़ अंगे्रजी शासन को करा दिये जाने से अंगे्रजी सरकार ने पैशाचिकता से अत्याचार कर इस क्रान्ति को दबा दिया और क्रान्तिकारियों को अनेक प्रकार की यातनाएं देकर मार डाला।
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अक्सर या कहिये तकरीबन हर रोज ही दिल्ली से रेप की घटनायें सुनने को मिलती रहती है पर इस बार यह पशुता और नर पैशाचिकता की तमाम हदे पार कर चुकी है दिमाग सुन्न होने लगता है ऎसा लगता है अब यह देश बचेगा नही अगर इस दिशा मे कानून “ कठोर दण्ड और तुरंत ” की शैली मे नही बनते है ।
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दूसरी ओर, जब हम उस महापुरुष की ओर दृष्टि डालते हैं जो गुरू तेगबहादुर से ६ वर्ष पूर्व शहीद हुआ था और उन्ही मूल्यों की रक्षार्थ शहीद हुआ था, और जिसको दिल्ली की कोतवाली पर नहीं, आगरे की कोतवाली के लंबे-चौड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर लाया गया था और जिसको-जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी पैशाचिकता के साथ, एक-एक जोड़ कुल्हाड़ियों से काटकर मार डाला गया था, तो हमें कुछ नजर नहीं आता ।
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दूसरी ओर, जब हम उस महापुरुष की ओर दृष्टि डालते हैं जो गुरू तेगबहादुर से ६ वर्ष पूर्व शहीद हुआ था और उन्ही मूल्यों की रक्षार्थ शहीद हुआ था, और जिसको दिल्ली की कोतवाली पर नहीं, आगरे की कोतवाली के लंबे-चौड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर लाया गया था और जिसको-जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी पैशाचिकता के साथ, एक-एक जोड़ कुल्हाड़ियों से काटकर मार डाला गया था, तो हमें कुछ नजर नहीं आता ।
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दूसरी ओर, जब हम उस महापुरुष की ओर दृष्टि डालते हैं जो तेगबहादुर से ६ वर्ष पूर्व शहीद हुआ था और उन्ही मूल्यों की रक्षार्थ शहीद हुआ था, और जिसको दिल्ली की कोतवाली पर नहीं, आगरे की कोतवाली के लंबे-चौड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर लाया गया था और जिसको-जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी पैशाचिकता के साथ, एक-एक जोड़ कुल्हाड़ियों से काटकर मार डाला गया था, तो हमें कुछ नजर नहीं आता ।