3. नास्तिकता, असत्य भाषण, क्रोध, प्रमाद, दीर्घसूत्रता, ज्ञानी पुरुषों का संग न करना, आलस्य, नेत्र अति पांचों इंद्रियों के वशीभूत होना, राजकार्यों में अकेले ही विचार, प्रयोजन को न समझने वाले विपरीतदर्शी मूर्खों से सलाह लेना, निश्चित किये हुए कार्यो का शीघ्र प्रारंभ न करना, गुप्त मंत्रणा को सुरक्षित न रखकर प्रकट कर देना, मांगलिक आदि कार्यों का अनुष्ठान न करना तथा सब शत्रुओं पर एक ही साथ आक्रमण करना-यह राजा के चैदह दोष हैं।