प्रकाशन: बिखरे मोती, कादम्बरी, अछूते स्वर एवं ओस में भीगते सपने और साँसों के हस्ताक्षर (काव्य-संग्रह), दर्पण के सवाल (हाइकु-संग्रह), अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित, प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक शीघ्र प्रकाशी य.
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अरविंदजी, आपके लिए …गोविंद की सौं है अरविंद, अरविंद सो है,नियम आचार तेज संयम प्रकाशी है!ज्ञानी, है विज्ञानी, संतजन-सा है ध्यानी,पूरा सागर विराट ; न कि बूंद ये ज़रा-सी है!!लघु का भी मान करे, गुणी का सम्मान करे,सुना था कि कृष्ण के सदृस महारासी है!राजेन्द्र कसौटी बिन परखे है खरा सोना,कृष्ण-सा ही योगी, कर्मवीर ये संन्यासी है!!-राजेन्द्र स्वर्णकार
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उनमें अर्थ भरने वाला रहा ही नहीं! उन अन्हार भरे प्रकाशी क्षणों में कैसे तुम वाक्यों से शब्द, शब्दों से अक्षर और अक्षरों से उनके रूप छीन कर नभ की ओर उछाल दिया करते थे! नभ और हमारे बीच की छत का अस्तित्त्व ही नहीं रह जाता था और मैं आँखें फाड़े शून्य में देखा करता था-तुम्हारे स्वर में शक्ति है कि उसके पीछे के आत्मविश्वास में कि उस अज्ञान में जो मौन को व्यर्थ समझता है?