वैसे भी प्यार तो महसूस करने की बात है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है......बस दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा....कभी एक दूजे को बदलने की कोशिश नही की.....यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है..
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मजबूत लोकपाल ' पर हो रही तमाम बहसों को भी इसी आइनें में देखना चाहिए कि आखिर एक लोकपाल की प्रकाष्ठा क्या होगी? सरकार से हारकर सुप्रीम कोर्ट की शरण लेना? भारत में जब कोई समस्या राजनैतिक हो और विकराल रूप धारण कर चुकी हो तो सत्ता तुरंत उसका कानूनी हल ढूंढना शुरू कर देती है।
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साधना जी बधाई आप ने जिस प्रकार अपने लेखन के माध्यम से नारी की वास्तविक एवं मार्मिक प्रस्तुति दी है वह सम्भवता नारी के बिभिन्न रूपों की प्रकाष्ठा है इस विषिस्ट एवं निष्पछ लेख के लिए पुनः बधाई इस लेख को पढने के बाद मै ” माँ ” पे लिखी मेरी रचना पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ …..