यज्ञ-याग के लिए उस स्थान को प्रकृष्ट माना और उसे नाम दिया प्रयाग (आज लोग उसे इलाहाबाद कहते हैं) ।
32.
औचित्य-विचार-चर्चा में क्षेमेंद्र ने औचित्य को काव्य का मूलभूत तत्व माना है तथा उसकी प्रकृष्ट व्यापकता काव्य प्रत्येक अंग में दिखलाई है।
33.
की भांति आपको यज्ञ के साधन रूप, होता रूप, ऋत्विज रूप, प्रकृष्ट ज्ञानी रूप, चिर पुरातन और अविनाशी रूप मे स्थापित करतें है॥११॥
34.
वह जनरूपी वृक्षों को गिराने के लिये प्रकृष्ट माया की नदी होती है जिसकी बाढ़ में हजारों संपन्न घर डूब जाते हैं:
35.
जब कि कुंडली गणना की प्रक्रिया एक अति जटिल, श्रमसाध्य, सूक्ष्म एवं प्रकृष्ट विवेक के साथ की गयी गहन गवेषणा है.
36.
तीस से पैंतीस वर्ष तक उन्हें गंभीर दार्शनिक ऊहापोह कर प्रत्ययों (Ideas) का और शिवप्रत्यय (आयडिया ऑव दी गुड) का प्रकृष्ट ज्ञान प्राप्त करना है।
37.
हम मनुष्यो की भांति आपको यज्ञ के साधन रूप, होता रूप, ऋत्विज रूप, प्रकृष्ट ज्ञानी रूप, चिर पुरातन और अविनाशी रूप मे स्थापित करतें है॥११॥ ५३०.
38.
इसलिए हे राघव, सुनिये, मैं आपसे यह मोक्षकथा कहूँगा, क्योंकि आप ही इस कथा के योग्य पात्र हैं अर्थात् श्रवणजनित प्रकृष्ट बोध के आधार हैं।
39.
यहाँ की पत्रकारिता अत्यन्ततेजोदीप्त है, सर्वाशतः अविस्मरणीय है, अतः एक पृथक् अध्याय में उसेसंकलित कर हिन्दी पत्रकारिता का प्रकृष्ट स्वरूप प्रदर्शित है जिसकेद्वारा स्वतंत्रता आंदोलन की दुंदुभी बजायी गयी.
40.
विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनस: स्थितिनिबन्धनी ॥ 1 / 35 ॥ गन्ध आदि विषयों वाली अथवा प्रकृष्ट वृत्ति-व्यापार उत्पन्न हुई मन की स्थिति का कारण होती है।