जैसा कि उपरोक्त वाद बिन्दुओं के विश्लेषण से साबित हो चुका है कि वादीगण द्वारा वाद विवादित सम्पत्ति पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर व्यादेश एवं बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये बेदखल न किये जाने के अनुतोष हेतु प्रस्तुत किया गया है।
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यहां वादी द्वा रा वादपत्र संशोधन करके नयी धारा जोड़कर कहा गया है कि वादीगण का वादग्रस्त सम्पत्ति पर निर्माण की तिथि से कब्जा है तथा वादीगण द्वारा वादग्रस्त सम्पत्ति पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अपने अधिकार पूर्ण कर लिये गये है।
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इस नजीर में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिमत अवधारित किया गया है कि प्रतिकूल कब्जे के लिए यह साबित करना होगा कि कब से व्यक्ति द्वारा स्वत्व को नकारा गया है, जो व्यक्ति प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वयं को स्वामी बताता है।
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इस नजीर में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिमत अवधारित किया गया है कि प्रतिकूल कब्जे के लिए यह साबित करना होगा कि कब से व्यक्ति द्वारा स्वत्व को नकारा गया है, जो व्यक्ति प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वयं को स्वामी बताता है।
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चूंकि जिस आराजी का प्रतिकूल कब्जे के आधार पर व्यादेश मांगा जा रहा है वह कृषि आराजी है और जिसके संबंध में उद्घोषणा का अधिकार राजस्व न्यायालय को है इस प्रकार यह वाद बिन्दु अर्न्तगत धारा-331 जमीदारी विनाश अधिनियम से बाधित साबित होता है।
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इस प्रकार अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दाखिल की गयी निर्णय विधि में दी गयी व्यवस्था से अपीलार्थी के तर्क में बल प्रतीत होता है और गॉवसभा के विरूद्ध प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वादीगण को उपरोक्त निषेधज्ञा का अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
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प्रतिवादी द्वारा अपने जवाबदावे की धारा-16 में कथन किया गया है कि वादी द्वारा प्रतिकूल कब्जे के आधार पर उद्घोषणा चाही गयी है और वाद उ0 प्र0 जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा-331 के प्राविधानों से बाधित है और इस न्यायालय को इसकी सुनवाई का क्षेत्राधिकार मूलवाद सं0-1170 / 1996 नहीं है।
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हालांकि करीमगंज में पालाथल क्षेत्र में सीमा स्तंभ वर्षों पूर्व 1962 में बनवाये गये थे, क्षेत्र की रक्षा करने में सरकार की अपराधिक विफलता से विदेशी नागरिक क्षेत्र का अतिक्रमण करने में सफल रहे और बाद में बांग्लादेश ने दावा किया कि क्षेत्र में इसके प्रतिकूल कब्जे के तहत हुई थी.
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जहां तक वादीगण को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वादी मानते हुये व्यादेश प्रदान किये जाने का सम्बन्ध है तो वाद बिन्दु सं0-1 (समेकित वाद) एवं (मुख्य वाद) के निस्तारण से साबित हो चुका है कि वादीगण स्वयं को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मालिक साबित करने में असफल रहे है।
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जहां तक वादीगण को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वादी मानते हुये व्यादेश प्रदान किये जाने का सम्बन्ध है तो वाद बिन्दु सं0-1 (समेकित वाद) एवं (मुख्य वाद) के निस्तारण से साबित हो चुका है कि वादीगण स्वयं को प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मालिक साबित करने में असफल रहे है।