| 31. | अबतक हमने रसात्मक स्मरण और रसात्मक प्रत्यभिज्ञान को विशुद्ध रूप में देखा
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| 32. | कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्यभिज्ञान की रसात्मक दशा में मनुष्य मन में
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| 33. | दशा की विपरीतता की भावना लिए हुए जिस प्रत्यभिज्ञान का उदय होता है
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| 34. | प्रत्यभिज्ञान में थोड़ा सा अंश प्रत्यक्ष होता है और बहुत सा अंश उसी
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| 35. | अच्छी बस्ती थी, हम प्रत्यभिज्ञान के ढंग पर इस प्रकार की कल्पना में
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| 36. | यह स्मृति स्वरूप कल्पना कभी कभी प्रत्यभिज्ञान का भी रूप धारण करती है।
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| 37. | प्रत्यभिज्ञान में पहले देखी हुई वस्तुओं या बातों के स्थान पर या तो पहले
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| 38. | इस वर्ण से ही समाज में मनुष्य का प्रत्यभिज्ञान एवं मूल्यांकन संभव होता है।
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| 39. | दशा की विपरीतता की भावना लिए हुए जिस प्रत्यभिज्ञान का उदय होता है उसमें
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| 40. | स्मृति के समन प्रत्यभिज्ञान में भी रस संचार की बड़ी गहरी शक्ति होती है।
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