मैं, मैं उस विश्वास के, उस श्रद्धा के, कितना अयोग्य निकला! जो मुझ पर इतना विश्वास करते थे कि मेरे एक इंगित पर जान तक दे देते, उनका मैंने कैसा प्रत्युपकार किया!
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प्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥
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प्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥तप
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देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकंस्मृतम्॥ दान देना अपना कर्त्तव्य है, ऐसे भाव से जो दान देश, काल और पात्र के प्राप्त होने पर प्रत्युपकार न करने वाले के लिए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान है।
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टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए नहीं होनी चाहिए कि हम भी यहाँ आए थे, या आप के आलेख पर टिप्पणी कर के जो एहसान मैंने किया है, उसके प्रत्युपकार में मेरा भी हक़ बनता है कि आप मेरे ब्लॉग पर आएँ और टिप्पणी करें।
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इस महीने में नेकियों का प्रत्युपकार भी बढ़ा दिया जाता है, नफिल नमाज़ों का पुण्य फर्ज़ नमाज़ों के समान और फर्ज़ नमाज़ों का पुण्य दूसरे महीने में सत्तर पूण्य के समान कर दिया जाता है और प्रार्थनाएं स्वीकार की जाती हैं।
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जीवन में दान देना ही कर्तव्य / धर्म है-इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे पात्र व्यक्ति को दिया जाता है, जिसमें प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है।
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एक और श्रेणी है जो बिना प्रत्युपकार की इच्छा के भी लोगों की सेवा करती है-गीता में ऐसे लोगों को सुहृद शब्द दिया गया है यानी जो प्रत्युपकार की बिना आशा के मानवता का उपकार करता रहे वह सुहृत / सुहृद है!
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एक और श्रेणी है जो बिना प्रत्युपकार की इच्छा के भी लोगों की सेवा करती है-गीता में ऐसे लोगों को सुहृद शब्द दिया गया है यानी जो प्रत्युपकार की बिना आशा के मानवता का उपकार करता रहे वह सुहृत / सुहृद है!
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कासे कहूं पीर जिया की माई रे......मगर हम ब्लॉगर तो बहुत खुशनसीब हैं,यहाँ कोई न कोई ही नहीं बहुतेरे हैं जो दुःख दर्द बाँट सकते है-बिना किसी 'सेकेण्ड थाट' के,बिना किसी प्रत्युपकार की भावना के....और मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ और जबरदस्त हुआ.