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प्राणतत्त्व उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.“नदी” वास्तव में केवल बहते हुए जल की धारा मात्र नहीं है, वह हमारा जीवन है, हमारा प्राणतत्त्व है, हमारी संस्कृत का जीवंत रूप है, हमारी सभ्यता की जननी है।

32.इसलिए दूसरे कामों में भले ही सरकार की या निधि की मदद लें, किंतु कार्यकर्ताओं के भरण-पोषण का आधार उन पर नहीं रहेगा, तब अपनी संस्थाओं में प्राणतत्त्व दाखिल होगा।

33.वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति में एक विशिष्ट शक्ति पायी जाती है, जिसे ' अर्थवा ' कहते हैं यह सभी प्राणियों के शरीर से बहने वाली प्राणतत्त्व की एक अदृश्य धारा या सूत्र है.

34.और इस प्राणतत्त्व से ही अमृततत्त्व सुख को प्राप्त किया जा सकता है जो व्यक्ति आयु एवं अमृत के स्वरूप में इन्द्र की पूजा करता है वह इस लोक में सौ वर्ष की आयु पाता है.

35.दिशाओं को विभक्त किया पूर्व दिशा उसका सिर है उत्तर-दक्षिण दिशाएं उसका पार्श्व है स्वर्ग लोक उसका पृष्ठ भाग, ब्रह्माण उसका उदर है, पृथ्वी उसका वक्षस्थल एवं अग्नि तत्त्व उस पुरुष की आत्मा बना जो यही प्राणतत्त्व कहलाया.

36.उनके अनुसार उदारता सौहार्द और मानवतावाद ही धर्म के प्राणतत्त्व होते हैं और इस तथ्य की पहचान बेहद ज़रूरी है-“आजकल वह उदार धर्म चाहिए जो हिन्दू, सिक्ख, जैन, पारसी, मुसलमान, कृस्तान सबको एक भाव से चलावै और इनमें बिरादरी का भाव पैदा करे, किन्तु संकीर्ण धर्मशिक्षा...(आदि) हमारी बीच की खाई को और भी चौड़ी बनाएँगे।” (डिनामिनेशनल कॉलेज: 1904)।

37.उनके अनुसार उदारता सौहार्द और मानवतावाद ही धर्म के प्राणतत्त्व होते हैं और इस तथ्य की पहचान बेहद ज़रूरी है-“आजकल वह उदार धर्म चाहिए जो हिन्दू, सिक्ख, जैन, पारसी, मुसलमान, कृस्तान सबको एक भाव से चलावै और इनमें बिरादरी का भाव पैदा करे, किन्तु संकीर्ण धर्मशिक्षा...(आदि) हमारी बीच की खाई को और भी चौड़ी बनाएँगे।” (डिनामिनेशनल कॉलेज: 1904)।

38.शरीर तुरंत ही चेतना में आ गया तथा उठ गया इस प्रकार से सभी इन्द्रियों ने प्राण के महत्व को जाना जिससे यह ज्ञात होता है की आत्मा द्वारा ही अमृत्व गुण प्राप्त हो सकता है आत्मा से ही शरीर की समस्त इन्द्रियां कार्य करती हैं अत: प्राणों की उपासना से ब्रह्म की प्राप्ति संभव है तथा मोक्ष के लिए प्राणतत्त्व की उपासना का विधान है.

39.प्राण का संचार समस्त नाड़ियों के भीतर होना चाहिए प्राण की महत्ता योग साधना से ही प्राप्त की जा सकती है प्राणतत्त्व शरीर की सभी नाड़ियों का भेदन करते हुए ‘ आत्मतत्त्व ' तक पहुंचने में सफल हो पाता है जिस प्रकार दीपक बुझने के पश्चात उसकी लौ परम तत्व में समा जाती है उसी प्रकार आत्मज्ञान साधना से सांसारिक बन्धन कटकर जाते हैं प्राणतत्त्व आत्मा के साथ मिलकर ब्रह्म को प्राप्त करते हैं

40.प्राण का संचार समस्त नाड़ियों के भीतर होना चाहिए प्राण की महत्ता योग साधना से ही प्राप्त की जा सकती है प्राणतत्त्व शरीर की सभी नाड़ियों का भेदन करते हुए ‘ आत्मतत्त्व ' तक पहुंचने में सफल हो पाता है जिस प्रकार दीपक बुझने के पश्चात उसकी लौ परम तत्व में समा जाती है उसी प्रकार आत्मज्ञान साधना से सांसारिक बन्धन कटकर जाते हैं प्राणतत्त्व आत्मा के साथ मिलकर ब्रह्म को प्राप्त करते हैं

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