| 31. | “तद्वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम्” अर्थात् तद्वचन होने से वेद का प्रामाण्य है.
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| 32. | मीमांसा ज्ञान को स्वत: प्रामाण्य मानती है।
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| 33. | मीमांसा के अनुसार ज्ञान का प्रामाण्य स्वत: और अप्रमाण्य परत:
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| 34. | प्रमाण में स्वत: प्रामाण्य ये मानते हैं।
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| 35. | मीमांसा ज्ञान को स्वत: प्रामाण्य मानती है।
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| 36. | अत: प्रामाण्य अपनी उत्पत्ति की दृष्टि से भी स्वत: है।
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| 37. | इसी प्रक्रिया से प्रमाणों का परत: प्रामाण्य उपपन्न होता है।
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| 38. | इस मत में प्रामाण्य और अप्रामाण्य दोनों परत: होते हैं।
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| 39. | बादरायण ने भी प्रामाण्य में परापेक्षा को स्वीकार नहीं किया है।
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| 40. | बादरायण ने भी प्रामाण्य में परापेक्षा को स्वीकार नहीं किया है।
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