और अच्छा था कमसिन, कोमलांगी थे, चालीस से ऊपर के होते उससे कथा के स्पोंडिलाइटिस और डाइबीटिक-व्यथा में बदलने के ख़तरे होने लगते, बेचारा हारा प्रेमातुर लोलुप मन मेडीकल ऊबटन में गंधाने लगता, श्रृंगार की सारी बहार कपूर की तरह उड़ गई होती-वैसे ही जैसे देखते-देखते हिंदी का समानांतर सिनेमा भुर्र हो गया, सन् अस्सी के दरमियान से हिंदी के राष्ट्रीय अरमान!..