फ़ील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा के बाद सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना के सर्वोच्च पद ' फिल्ड मार्शल ' से सम्मानित किया गया है ।
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उनके देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्म विभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फ़ील्ड मार्शल के मानद पद से अलंकृत किया गया।
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देश में सैनिक शासन लागू होने के महज़ 20 दिन में फ़ील्ड मार्शल अयूब खान ने एक रक्त विहीन तख़्तापलट में इस्कंदर मिर्ज़ा को उनके पद से हटा दिया.
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मिस्र की सैन्य परिषद के प्रमुख फ़ील्ड मार्शल हुसैन तन्तावी ने कल टेलीविजन पर अपने भाषण में कहा कि शरफ़ प्रशासन का स्थान लेने के लिए नई सरकार गठित होगी।
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इसी कारण उन्हें फ़ील्ड मार्शल की पदोन्नती दी गई किंतु ब्रिटिश सेना के जवाबी हमले और उत्तरी अफ़्रीक़ा में जर्मन सेना को पर्याप्त सहायता न मिलने के कारण रोमल को पीछे हटना पड़ा।
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अदम्य साहस और युद्धकौशल के लिए मशहूर, भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णिम दस्तखत करने वाले सबसे ज्यादा चर्चित और कुशल सैनिक कमांडर पद्म भूषण, पद्म विभूषण सैम मानेकशॉ भारत के पहले ' फ़ील्ड मार्शल ' थे।
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फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने भारत के लिए कई महत्त्वपूर्ण जंगों में निर्णायक भूमिका निभाई थी, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है-1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जीत, जिसका सेहरा उनके सिर ही बाँधा जाता है।
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19 अगस्त 1942 को उन्होंने निजी तौर पर डिएपे का विनाशाकरी हमला करवाया (जिस पर मित्र देशों की सेना, खास तौर पर फ़ील्ड मार्शल मोंटगोमरी ने बाद में दावा किया कि यह हमला शुरू से ही एक गलत विचार था.
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फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान के दूर में ही गवादर में जदीद बंदरगाह बनाने का मनसूबा बन गया था मगुर फ़नड की कमी और दीगर मुल्की और बेन अलाअक़वामी मुआमलात और सयासी मस्लहतओ-ं की वजह इस की तामीर काकाम शुरू ना हो सका।
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फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान के दौर में ही ग्वादर में जदीद बंदरगाह बनाने का मनसूबा बन गया था मगर पैसे की कमी और अन्य मुल्की और अंतर्राष्ट्रीय मामलात और सयासी मसलों की वजह इस की तामीर का काम शुरू ना हो सका।