मंच और माइक पाते ही हिंदी का लेखक जिस बेधड़क उत्साह और बकवासी प्रवाह में बकलोली बोलने लगता है, गोभी के पत्तों की सुखद हरियाली से घिरा, दो महिलाओं से रक्षित, बकलोली छांटने की मेरे भीतर भी कुछ वैसी ही सुखद घुमड़न उमड़ रही थी.
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जिन राजनेताओं, पत्रकारों, और व्यक्तियों को संत आसाराम पर आस्था नहीं उन के लिये भी यह जरूरी है कि कम से कम वह देश के कानून में ही आस्था रखें और अपना गैर कानूनी बकवासी किस्म का प्रचार बन्द करें जब तक कोर्ट संत आसाराम को आरोपी नहीं घोषित कर दे।
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हां, अपना फेट आईने में चौबीसों घंटे चौकन्ना ज़रूर दीखता रहता है, और कहें तो कायदन वही दिखता है बाकी तो बकते रहने के पैदाइशी बकवासी संस्कार हैं, कान पर जनेऊ डालकर धोती से दूर गिराने की तरह-एक डेढ़ सौ का कुनबा होता है उसे रिझाने, और कुछ उसी तरह से एक दूसरे कुनबे को खौरियान-चिढ़ाने मुंह से झड़ते रहते हैं.
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उसकी इस फितूरी और बकवासी, उसकी चुहलभरी तर्ज और उससे भी बढ कर उसका कौवे की तरह तिरछी दृष्टि से बीच बीच में मेरे क्रोध के अप्रत्याशित उफान को मापने की चिर परिचित चेष्टा करना, इन सबसे मेरे भीतर एक आग सी सुलगने लगी थी, पर फिर भी उसका जोश बैठने की उम्मीद में मैने चेहरा भावशून्य और प्रतिक्रियाहीन बनाए रखा।
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कैसे भारत की जहरीली हवा साफ हो और कैसे इस किस्म के पचीस-पचास बकवासी लोग देश के वक्त को बर्बाद करने के ओवरटाईम काम से बेदखल किए जाएं, और कैसे गांधी के नामलेवा इस लोकतंत्र में गांधीवाद और लोकतांत्रिक तरीके से आपस में बातचीत हो सके, इसके बारे में इन गिरोहबंदियों से आजाद होकर इस देश को व्यापक जनकल्याण के रास्ते निकालने चाहिए।
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ब्लॉग पर साहित्य की सार्थकता के सन्दर्भ में हिंदी के वहुचर्चित व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का मानना है कि “ब्लॉग तो एक माध्यम है और आप यह भी जानते हैं की जैसे पत्रिकाओं में बकवासी साहित्य भी प्रकाशित होता है वैसे ही ब्लॉग भी बहुतों के लिए दिल बहलाव का माध्यम है-कुछ भी, चिंतन विहीन, सतहीय भी बहुत आता है ब्लॉग के माध्यम से&
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अब आप समझ गये होंगे कि मै कितना कंफ्यूज्ड किस्म का बकवासी इंसान हूं साथ मे एक पत्नि और बच्चा भी है उनका भी ख्याल रखना है अपनी प्रयोगधर्मिता के बीच मे वें बेचारे हर बार पीसते रहते हैं, पत्नि की चुप्पी और बच्चे का अपने आप ने खोए रहना कई बार मुझे हैरत मे डाल देता है कि आखिर मै कर क्यां रहा हूं।
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तीसरी बात यह है कि कभी ऐसी बात मुँह से न निकालना जिससे तुम्हें बाद में लज्जित होना पड़े, और यह भी याद रखो कि बहुत बोलनेवाला आदमी हमेशा लज्जित होता है और जो कम बोलता है और सोच-समझ कर बोलता है उसे लज्जा नहीं उठानी पड़ती क्योंकि गंभीरता से आदमी का मान बढ़ता है और उसके प्राणों को भी खतरा नहीं होता और बकवासी आदमी ऊटपटाँग बातें करके मुसीबत उठाता है।
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हवा का बुत अल्लाह दोज़ख का पेट पत्थरों से भर रहा है, ख़ुद साख्ता उम्मी मुहम्मद कुरआन का पेट इन मोह्मिल आयातों से भर रहे हैं, मुस्लमान हवाई बुत अपने अल्लाह का पेट इन बकवासी आयातों की इबादत से भर रहा है, आलिमाने दीन और मुतल्लिक़ीन दीन बराए ज़रीआ मआश अपना पेट इस्लाम से भर रहे है, नव जवानों ने जेहादी राह पकड़ी है, कमजोरों को इस्लाम ने खैराती रिज़्क़ बख्शा है।