जहाँ तक पशुवध की बात है तो भारत के कई मंदिरों में तो ये घिनौना काम खुलेआम होता है मगर हाँ इसे त्योहार कि शक्ल दे देना बहुत ही खेदजनक है और ऐसी परम्पराओं के निर्वाह से पहले किसी को खुद से पूछना चाहिए कि क्या कोई पैग़म्बर इस तरह की हिंसा की बात कर सकता होगा? बक़रीद की कथा के अनुसार हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे की क़ुर्बानी दी मगर उसकी जगह तुम्बा निकला ।