हा हा हा बदबुदार कुत्ता महक कितना बुरी तरह तड़प रहा है इस बदबुदार महक कुत्ते की इस फटी हुयी हालत पर एक गाना याद आ रहा है ” ये बदबुदार महक कुत्ता इतना फड़फड़ा रहा है...
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हा हा हा बदबुदार कुत्ता महक कितना बुरी तरह तड़प रहा है इस बदबुदार महक कुत्ते की इस फटी हुयी हालत पर एक गाना याद आ रहा है ” ये बदबुदार महक कुत्ता इतना फड़फड़ा रहा है...
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कि पढने बैठोगे तो आईना दिखा देगा, हम न जाने क्या क्या गलतफ़हमियां पाले रखते हैं, उन्हें तार तार कर देगा, तमाम नकली सफ़ेदी और उजाले को हटा कर पोत देगा एक बदबुदार कालिख, वही हु आ..
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“ नोट:-कृपया इस नोट को ” फ़ेसबुकिया कांग्रेसी समूहों “ में जाकर शेयर ना करें, उन्हें अपने बनाए हुए ” पारिवारिक चमचागिरी ” के स्वर्ग में रमे रहने दीजिये …:):) सच मे मै कांग्रेसियो को एक गंदी और बदबुदार नाली का कीड़ा मानता हूँ.
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अगर कोई आदमी बदबुदार चीजे न खाए कम खाए हाजमा अच्छा हो कब्ज न रहता हो शहद और पानी का इस्तेमाल ज्यादा करता हो और पाँच टाइम से ज्यादा दातुन करता हो और बदन पर इत्र लगाता हो तो उसके महकते बदन से जो भी चीज निकलेगी महकेगी ही जो चाहे आजमा ले
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साथ मे और एक गम इस महक कुत्ते को खाये जा रहा है वो ये कि इस महक कुत्ते की ऐसी मरेली और फटेली हालत हो गयी है कि कोई कुतिया इस बदबुदार महक कुत्ते को भाव ही नही दे रही है बेचारा भरी जवानी मे इस महक कुत्ते को कितना कष्ट मिल रहा है तभी साला इतना फड़फड़ा रहा है ही ही ही
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इंडिया गेट वाली सड़क चौड़ी है साफ़ है तो मुनिरका की गलियां बदबुदार हैं. जी. के के पोश इलाके से कुछ ही कदम दूर है सावित्री नगर के उबड़-खाबड़ रास्ते, साकेत के गोल्फ़ क्लब से होज़ रानी गांव इतना दूर भी नहीं कि कभी गुज़रते वक्त नज़र ना पड़े, महरोली की फूल मंडी से सेन्ट्रल पार्क वकाई दूर है इन दूरियों को किलोमीटर में नहीं फ़ासलों में नापना बेहतर होगा.
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इसलिये हम दोष स्वयँ पे लेते हुये आज के युवा पीढी को देते हुए जिनके लिये शास्त्री जी मानक और पथ प्रदर्शक हो सकते है यह गुजारिश करना चाहेंगे की इस लेख से हमे बहुत कुछ सबक के तौर पे सीखते हुये भविष्य मे, भविष्य के लिये वो सीलन, वो बदबुदार, वो सांसत से भरा माहौल न दे, उसके लिये प्रयास होना चाहिये! अगर कुछ गलत या ज्यादा लिख दिया हो तो क्षमा! आपका नवीन