इसी तरह तुझे मालूम है के राहे ख़ुदा में बहुत सों के हााथ कटे हैं और साहेबाने ‘ ारफ़ हैं लेकिन जब हमारे आदमी के हाथ काटे गए तो उसे जन्नत में तय्यार और ज़ुलजनाहीन बना दिया गया और अगर परवरदिगार ने अपने मुंह से अपनी तारीफ़ से मना न किया होता तो बयान करने वाला बेशुमार फ़ज़ाएल बयान करता जिन्हें साहेबाने ईमान के दिल पहचानते हैं और सुनने वालों के कान भी अलग नहीं करना चाहते हैं।
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101-लोगों पर एक ज़माना आने वाला है जब सिर्फ़ लोगों के उयूब बयान करने वाला मुक़र्रबे बारगाह हुआ करेगा और सिर्फ़ फ़ाजिर को ख़ुश मिज़ाज समझा जाएगा और सिर्फ़ मुन्सिफ़ को कमज़ोर क़रार दिया जाएगा, लोग सदक़े को ख़सारा, सिलए रहम को एहसान और इबादत को लोगों पर बरतरी का ज़रिया क़रारे देंगे, ऐसे वक़्त में हुकूमत औरतों के मशविरे, बच्चों के इक़्तेदार और ख़्वाजा सराओं की तदबीर के सहारे रह जाएगी।
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इपंले जब-जब ‘ कहानीकार ' काशीनाथ सिंह के पास जाता है, यह महसूस करता है कि इस कहानीकार का यू. एस. पी. वही है जिसने आगे चलकर उसे विलक्षण संस्मरणकार और अपनी बहुत नज़दीक की दुनिया को बयान करने वाला बेमिसाल ‘ कमेंटेटर ' बना दिया. अब आप इसे ‘ टिलिआलजी ' कह लीजिए, पर इपंले अपनी स्थापना पर बज़िद है कि इस ‘ कहानीकार ' का अंततः अकाल्पनिक गद्यवृत्तों की दिशा में जाना बहुत स्वाभाविक, यहां तक कि नियत था.
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इमाम अली (अ) नहजुल बलाग़ा में एक ऍसा जुमला बयान फ़रमाते हैं जो आपकी सीरत को बयान करने वाला और बहुत ही हैरत अंगेज़ है आप मूसा (अ) और हारून (अ) के क़िस्से को बयान फ़रमाते हैं और कहते हैं कि जब यह लोग मबऊस बे रिसालत हुई तो चरवाहों का लिबास पहने हुए फ़िरऔन के दरबार में हाज़िर हुए “و علیھا مدارع” الصوف दोनो पशमीना का लिबास पहने हुए थे जो कि उस ज़माने का मामूली तरीन लिबास था و بایدیھما“”العصیٰ और दोनो के हाथ मे असा था, और यही उन दोनो का कुल सरमाया था।