पुष्पपाल सिंह सुनीता जैन का साहित्यिक कद बहुत ऊंचा है और अपने बहुवर्णी विस्तार में उनकी काठी (यशकाया) सुविस्तृत! कविता, कहानी, उपन्यास, आत्म-कथा, आलोचना-इतनी सारी विधाओं में जितने अधिकारपूर्वक उन्होंने निरंतरता में लिखा है, वह विस्मित करता है।
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इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रकाश के अपवर्तन की खोज की, उन्होंने प्रदर्शित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को रंगों के एक स्पेक्ट्रम में वियोजित कर देता है, और एक लेंस और एक दूसरा प्रिज्म बहुवर्णी स्पेक्ट्रम को संयोजित कर के श्वेत प्रकाश का निर्माण करता है.
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लेकिन जब बेतुके कंटेंट, बेतुकी समाचार कथाएं और बेतुके सोप ऑपेरा की दुनिया से खासतौर पर बौद्धिक वर्ग का पाला पड़ता है तो एक बार फिर सवाल उठने लगता है कि क्या भारत जैसे बहुवर्णी और संस्कृतिबहुल देश में ऐसे प्रसारक नहीं होने चाहिए, जो देसी संस्कृति का खयाल तो रखे ही, संपूर्ण भारतीयता की अवधारणा के साथ फिक्शन और समाचार दोनों तरह के कंटेंट पेश करें।