करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, पूर्वा (इत्यलम् तथा हरी घास पर क्षण भर), सुनहले शैवाल, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में) और ऐसा कोई घर आपने देखा है।
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ये हैं-सागर मुद्रा (१ ९ ७ १), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (१ ९ ७ ४), महावृक्ष के नीचे (१ ९ ७७), नदी की बाँक पर छाया (१ ९ ८ २) और ऐसा कोई घर आपने देखा है (१ ९ ८ ६) ।
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अति सूधो सनेह को मारग है, जहँ नेकु सयानप बाँक नहीं तहँ सीधे चलौ तजि आपनपौ, झिझकैं कपटी जो निशाँक नहीं घननंद के प्यारे सुजान सुनौ, यहँ एक ते दूसरो आँक नहीं तुम कौन सी पाटी पढ़े हौ कहौ, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं (प्रेम का मार्ग बिलकुल सीधा है जहाँ सयानेपन और चतुराई के लिए कोई जगह नहीं है।
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भग्नदूत, चिंता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, पूर्वा, सुनहले शैवाल, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, ऐसा कोई घर आपने देखा है (हिंदी) प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स (अंग्रेजी)
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के दिन तथा अन्य कविताएं / अज्ञेय (अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद) कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय नदी की बाँक पर छाया / अज्ञेय पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय बावरा अहेरी / अज्ञेय महावृक्ष के नीचे / अज्ञेय सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय संपादित तार सप्तक / अज्ञेय दूसरा सप्तक / अज्ञेय तीसरा सप्तक / अज्ञेय कविताएँ अनुभव-
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कविता संग्रह: भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, पूर्वा (इत्यलम् तथा हरी घास पर क्षण भर), सुनहले शैवाल, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में) और ऐसा कोई घर आपने देखा है।
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प्रमुख कृतियां: कविता संग्रह: भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, पूर्वा (इत्यलम् तथा हरी घास पर क्षण भर), सुनहले शैवाल, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में) और ऐसा कोई घर आपने देखा है।
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मैंने कई बार इन्हें अपने निजी प्यार की संज्ञा दी है आदमी के मुक्त होने से पूर्व सारा देश इन्हें हवाओं के साथ सुनता है ये बाँक की तरह पैनी और फूलों की तरह नरम है इन्हें घने जंगल कटते समय जाड़े की अँधेरी रात में सुना है इन्हें बच्चों की हँसी, माँ के प्यार और दोस्त की सच्चाई की तरह सुना है इनमें हर बार लौह श्रृंखलाओं की आकृतियाँ उभरती हैं डर से भागते पाँव की धमक, टूटी रस्सियों के छोर और काँटेदार तारों के क्रूर-बाड़े।