स्वप्न की कामना चित्र बन आ गया आज फिर सामने थरथराते अधर का वचन बाँचना रश्मि-गंधों में लिपटी हुई यष्टि की काँपती, सरसराती हुई सी छुअन कोमलांगी परस से संवरती हुई एक उत्साह की होती उत्सुक थकन
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वो स्वरों को खोलकर, जाँचना सब चाहते हैं, भाव उठ, बह चले जो, बाँचना सब चाहते हैं, कर्म है उनका यही तो इस कर्म का अधिकार दे दो संग ही मेरे हृदय के मर्म का आधार दे दो ।।
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‘ मधुकली ' ने अतीत के इस भूले-बिसरे पन्ने को फिर से बाँचना शुरू किया और बाजार के बीहड़ में बदहवास भाग रही नई सदी की नई नस्ल को इस ओझल, किन्तु अनमोल पाठ के लिए प्रेरित किया।
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जो कर्ज बाँटने का काम कर रहा था, वह इतिहास बाँचना चाहता था और एक इतिहास बाँचने वाले को लगता था कि वह गलती से इस पेशे में आ गया है, उसे तो वास्तुविद बनना था,
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वो स्वरों को खोलकर, जाँचना सब चाहते हैं, भाव उठ, बह चले जो, बाँचना सब चाहते हैं, कर्म है उनका यही तो इस कर्म का अधिकार दे दो संग ही मेरे हृदय के मर्म का आधार दे दो ।।
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हमको सुखों की आँख से तो बाँचना आता नहीं हमको सुखों की साख से तो आँकना आता नहीं अभावों के चढ़ेए साँस की खूँटी हमको सुखों की लाज से तो झाँकना आता नहीं निहारे दूर से गुजरें गुजरते ही चले जाएँ मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है
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