हाँ परन्तु जिस ई-मेल का मैने प्रथम भाग में ज़िक्र किया था उसमे इस पूरी कथा से मिलने वाली दो ज्ञान की बातों का जिक्र है जो आप सब के साथ बाँट लेना ज़रूरी है:
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8 हमने तुम्हारे प्रति वैसी ही नम्रता का अनुभव किया है, इसलिए परमेश्वर से मिले सुसमाचार को ही नहीं, बल्कि स्वयं अपने आपको भी हम तुम्हारे साथ बाँट लेना चाहते हैं क्योंकि तुम हमारे प्रिय हो गये हो।
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और अगर पत्नी मायके वापस जाती हैं तो भी उसको वो सम्पत्ति जो नॉमिनी होने की वजह से “ केवल उसको ” मिली हैं उसको अपनी सास के साथ बराबर से बाँट लेना चाहिये अगर बच्चे नहीं हैं तो ।
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डिनर सेट मिलेगा … सब लोग थाली कटोरी जो भी मिले, बाँट लेना … भगवान की कसम, मैं आपने लिए एक चम्मच भी न रखूंगी … आप सब की ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है … ” लेकिन किसी को विश्वास नहीं है..
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** दर्द को सहेजना दिल की गहराई में बाँट लेना दर्द भी ख़ुशी के पलों में पलकों को बिन भिगोये ये फन भी सिखला दिया राह चलते चलते एक दिन यूँ ही *** मैं तो जानता ही नहीं दर्द में हंसना और हँसाना छलक जाते हैं आंसू गम में तुम्हारी भीगी आँखों में झांकता हूँ जब
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जिसके जीवन का लक्ष्य ही दूसरों के दुख दर्द को बाँट लेना हो, जिसने अपने २० वर्ष लंबे डॉक्टरी जीवन में न जाने कितने निर्धनों को अपने पैसों सेअपनी सेवा से मदद से त्याग से बचाया है जिसका आदर्श जीवन देश का गौरव है उसके पिता को कमजोर पड़कर मरने की इच्छा करना शोभा नही देता।
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बहुत ऊंचा कुछ कहने सोचने और सिद्ध करने के लिए नहीं, बल्कि बस यह सोचकर लेखन में जुटे रहना चाहिए कि जो अनुभव समय और जीवन हमें प्रतिपल दे रही है,उसमे से कुछ जो किसी अन्य के जीवन को भी सुरभित कर पाए,उसे बाँट लेना चाहिए…अपना कुछ नुकसान नहीं होने वाला इसमें भले सामने वाले का कुछ भला होना तय है…
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बहुत ऊंचा कुछ कहने सोचने और सिद्ध करने के लिए नहीं, बल्कि बस यह सोचकर लेखन में जुटे रहना चाहिए कि जो अनुभव समय और जीवन हमें प्रतिपल दे रही है,उसमे से कुछ जो किसी अन्य के जीवन को भी सुरभित कर पाए,उसे बाँट लेना चाहिए…अपना कुछ नुकसान नहीं होने वाला इसमें भले सामने वाले का कुछ भला होना तय है…
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फर्जी जोडे ख़ुद सरकारी मुलाजिम खोज कर लाते हैं {यानी पहले से विवाहित जोडो को ६ ५ ०० रुपए का लालच देकर सामूहिक विवाह के मंडप मे दुबारा बिठाना और बाद मे उन्हे १ ००० रुपया दे कर बाकी पैसा आपस मे बाँट लेना} पर फर्जी जोडे मे परिक्षण केवल और केवल स्त्री का ही होता हैं ।
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ऐसी स्थिति मे जहां ग्रामीण और शहरी, हिंदी और अंग्रेजी माध्यम, सरकारी और प्राईवेट स्कूलों की कोई सम्मिलित विज्ञान स्पर्धा हो वहां पर निर्णय को अनुपातिक बाँट लेना चाहिए तांकि केवल वो ही बच्चे व्यवस्था का लाभ ना उठा सके जिन के पक्ष मे पहले से निर्णायक, धन, सुविधाएँ और अध्यापकों और अभिभावकों का भरपूर सहयोग पहले से ही है.