छोटे भाई खोकोन की बहू की निस् संग, आत् मलीन खुशी का बाजा बजाना, भाई की लापरवाह थकान और किसी सूरत में जो जैसा है, चलता रहे, की तरतीब भिड़ाने की बेचारगी, खुद अपनी जवानी का बेआवाज़ गुज़रते जाना, दीपशिखा सब बिना आवाज़ किये सुनती. “
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सेकुलर हुए बिना काम नहीं चलेगा।.... जी हां आपके हिसाब से तो बिल्कुल ही नहीं चलेगा....आपकी छाती को ठंडक तो तभी मिलेगी जब लालकिले पर चांद तारे वाला हरा झंड़ा दिखाई देगा....समझ सकता हूं आपकी पेशेगत मजबूरी....वैसे भी अपने आपको ज्यादा बड़ा पत्रकार दिखाने के लिए सेक्युलरवाद का बाजा बजाना ही पड़ता है....
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मेरी इस बात पर रीझती हुई दीदी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और अपनी छाती से लगाती हुई बोली ” हाय रे मेरा सोना.... मेरे प्यारे भा ई.... तुझे दीदी सबसे अच्छी लगती है.... तुझे मेरी चुत चाहि ए.... मिलेगी मेरे प्यारे भाई मिलेगी.... मेरे राजा.... आज रात भर अपने हलब्बी लण्ड से अपनी दीदी की बूर का बाजा बजाना......
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गांव का सारा लगान तालुके में पहुँचाना, गांव में आये बड़े अधिकारियों के घोड़ों के साथ दौड़ना, उनके जानवरों की देखभाल करना, चारा-पानी देना, ढिंढोरा पीटना, गांव में कोई मर जाये तो उस मौत की सूचना गांव-गांव पहुँचाना, मरे ढोर खींचना, लकड़ियां फाड़ना, गांव के मेले में बाजा बजाना, दुल्हे का नगर द्वार में स्वागत करना आदि काम महारों के हिस्से आते।