| 31. | इस तरह दर्शन के प्रमुख विषय बाह्य जगत्, चेतन आत्मा और परमात्मा बन जाते हैं।
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| 32. | बाह्य जगत् में भी सभी रूपों और आकारों में सद्गुरु की चेतना ही बसती है।
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| 33. | इस तरह दर्शन के प्रमुख विषय बाह्य जगत्, चेतन आत्मा और परमात्मा बन जाते हैं।
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| 34. | हमारी ज्ञानेंद्रियाँ बाहर की ओर खुलती हैं, हम प्राय: बाह्य जगत् में विलीन रहते हैं।
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| 35. | हमारी ज्ञानेंद्रियाँ बाहर की ओर खुलती हैं, हम प्राय: बाह्य जगत् में विलीन रहते हैं।
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| 36. | इस तरह दर्शन के प्रमुख विषय बाह्य जगत्, चेतन आत्मा और परमात्मा बन जाते हैं।
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| 37. | बाह्य जगत् में सभी कामनाओं-तामसिकताओं के प्रति अरुचि पैदा होगी व चित्त निर्मल बनेगा ।।
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| 38. | यह दूसरी अंतर्निहित शक्ति है, जो हमें बाह्य जगत् के पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान कराती है।
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| 39. | हमारी ज्ञानेंद्रियाँ बाहर की ओर खुलती हैं, हम प्राय: बाह्य जगत् में विलीन रहते हैं।
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| 40. | वे जैसे अपने अन्तर्जगत् के प्र ति सचेत थीं, वैसे ही बाह्य जगत् के प्रति क्रियाशील।
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