आखिर इसका रास्ता क्या हैं? इस प्रश्न पर उत्पादकों का कहना है सरकार अगर३३५ (प्रति टिन १५ किलोग्राम) के नियंत्रित मूल्य पर ही वनस्पति बिकवाना चाहती हैतो उसे आयातित खाद्य तेलों का रेगुलर कोटा कुल जरुरत का कम से कम ६५ प्रतिशत करनाचाहिए तथा २० प्रतिशत कामर्शियल (ऐच्छिक) लेकिन ५०-२० के मौजूदा कोटे पर ३५०-३५५रुपए तो उत्पादन लागत बैठ रही है.
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निरोग के लिऐ योग तो ठीक हैं, पर संत के चोले में चल रहा जडी बूटी का बडा कारर्पोरेट बिजनेश पुरे देश में उसके आउटलेट खोल कर झोला छाप लोगो की कलम से प्रमाणिकताहीन जडी बूटी, सब् जी भाजी, नैतिकता और डाक् टरेट की किताबो के आकर्षक पैकट उचे दाम पर बिकवाना ये भी तो हैं इमोशनल अत् याचा र..............
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पूर्व प्रधान उमेश चन्द्र ने बताया गुटखा के ब्लैक मे बिकने से जहां गुटखा खाने वालो की जेब पर डाका पड रहा है वहीं महंगाई के चलते 50 गुटखे प्रतिदिन खाने वाले लोग 5 गुटखा प्रतिदिन खाने लगे है जो गुटखा खाने वालो के स्वास्थ्य के लिए काफी हीतकर है इंसानो के लिए गुटखा रोकने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि सरकार को प्रति गुटखा 10 रू 0 मैं बिकवाना चाहिए जिससे गुटखे की बिक्री न के बराबर रह जाएगी।
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अरे भाड़ में जाये सोसाइटी और देश मुझे अपने इन्क्रीमेंट और फॅमिली से मतलब है,, क्यों बेकार में देश के बारे में समाज के बारे में सोंचे इतना दिमाग खर्च करके तो अपन एक नया सॉफ्टवेर अप्प्लिकतिओन तयार कर लेंगे,,, जलता रहे समाज और डूबता रहे देश मुझे क्या मेरा तो इस साल का पैकज १ २ लाख का फिय्नल है बस कोक में चूहे मारने की दवा हिसाब से मिलकर इस बार सुन्नी लियों से बिकवाना है राजी तो वो पहले से ही है...