दुनिया में हर कोई नंगा आया बिना मजहब के बिना धर्म के बिना जाति के बिना पूर्वाग्रह के यहाँ हमने उसे दिया पहना धर्म, मजहब, जाति का चोगा राज्य, राष्ट्र्र्र का घर संस्कारों के नाम पर की है ज्यादती सब की है अपनी-अपनी जिद-हमारा रास्ता ही अच्छा है जो पहुँचायेगा मंजिल तक क्या किसी ने देखा है वह मंजिल? जिसमें सभी एक साथ रहते हों बिना मजहब, जाति, पंथ के जहाँ नहीं है किसी प्रकार की दीवार सिर्फ और सिर्फ मानव के