हमने तो सिर्फ सुख, ख़ुशी और आनन्द को ही न्यौता दिया था ये बिन बुलाया अतिथि गम दर्द दुःख क्यों कर चला आया? और हम इन्हें देख दिल का दरवाजा बंद करना चाहते हैं नहीं दोस्तों हमें इन्हें गले लगाना चाहिए ये वो मेहमान है जो इक बार आपका हो गया तो जन्मों तक आपका साथ निभाएगा.
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किसी अनजान नगर में / / खूबसूरत घर देखता हूं सपनों में मैं // न जाने कौन है उस घर का मालिक // कब से गया हुआ है कहीं वो // रह रहा हूं वहां बन कर एक बिन बुलाया महमान // रखता हूं रोज़ बांधकर अपना मैं सामान // करता हूं बस घर के मालिक का इंतज़ार // जो आते ही निकालेगा मुझे बाहर!!
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यदि मेरा ऐसा कहना आपको बुरा लगा तो मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ और यदि जाना ही जरूरी है तो मुझे जाना चाहिए! क्यूंकि आप इस महफ़िल के वरिष्ठ सदस्य हैं! मैं तो बस यूँही बिन बुलाया मेहमान हूँ! और शायद मेरा लेखन भी इस महफ़िल के लायक नहीं! विश्व जी की तरफ से मैं माफ़ी चाहता हूँ! अब यदि आप चाहे तो मैं यहाँ ठहरूं नहीं तो? मगर एक बात आप तसल्ली से सोचियेगा की विश्व जी का ऐतराज़ सही था या गलत!
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यदि मेरा ऐसा कहना आपको बुरा लगा तो मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ और यदि जाना ही जरूरी है तो मुझे जाना चाहिए! क्यूंकि आप इस महफ़िल के वरिष्ठ सदस्य हैं! मैं तो बस यूँही बिन बुलाया मेहमान हूँ! और शायद मेरा लेखन भी इस महफ़िल के लायक नहीं! विश्व जी की तरफ से मैं माफ़ी चाहता हूँ! अब यदि आप चाहे तो मैं यहाँ ठहरूं नहीं तो? मगर एक बात आप तसल्ली से सोचियेगा की विश्व जी का ऐतराज़ सही था या गलत!
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भारी मन से उठा और ताकि देख सकूं यह बिन बुलाया मेहमान कब से चुपके से आ गया था मेरे स्टडी कक्ष में-जयशंकर प्रसाद की एक कविता भी अनायास याद आयी-पथिक आ गया एक न मैंने पहचाना, हुए नहीं पद शब्द न मैंने जाना...कर्कश स्वर लहरी के बीच यह रोमांटिक कविता का यकायक स्मरण होना और नींद में खलल पड़ना-इस सिचुएशन पर एक बेबस मुस्कराहट भी होठों पर आ धमकी...बहरहाल अब मैं अपने स्टडी कक्ष में था मगर ऐसा लगा आवाज कभी इधर तो कभी उधर से आ रही थी....