इतनी कम उम्र में वह इतना बडा सत्य जान गई थी कि मनुष्य के मन और बाहर की सृष्टि में एक अद्भुत समानता है-वे जब तक अपना चक्कर पूरा नहीं कर लेते, उन्हें बीच में रोकना बेमानी है।
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दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान में दिल्ली डेयर डेविल्स और पुणे वैरियर्स के बीच खेला जाने वाला मैच बारिश की वजह से बीच में रोकना पड़ा, फिर बाद में उसे रद्द करना पड़ा.दोनो टीमों को एक-एक अंक दिए गए.
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अन्ना के द्वारा अपने मुम्बई अनशन को बीच में रोकना और जेल भरो आन्दोलन को रद्द करना एक अलग कदम है और अब स्वयं को पांचों राज्यों के चुनावों में दल-विरोधी प्रचार करने की बात करना भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से स्वयं को भटकाना ही है।
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आश्चर्यजनक है कि लगभग बीस मिनट तक हजारों श्रोताओं द्वारा एक नये कलाकार की असंगत प्रस्तुतियों बरदाश्त करने के बावजूद वे इसे उनके धैर्य या ‘ कलाभिव्यक्ति ' को प्रोत्साहन के रूप में नहीं देखते, जबकि तीसरे गीत को बीच में रोकना उन्हें ‘ सामूहिक सहमति से कलाभिव्यक्ति की हत्या ' या श्रोताओं की ‘
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करना तो था श्री महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत्र...................पर माईक काम नहीं कर रहा......पहले रिकार्ड कर चुकी कोई प्रार्थना ढूंढी....................नहीं मिली.................मिला तो ये गीत.........उतना बुरा भी नहीं पर तब भी कोई मेहमान के आ जाने से बीच में रोकना पड़ा था...........पर ये तो अपना स्टाईल है.......यही सही......एक नया प्रयास..............हा हा हा......पर माईक ठीक होते ही पहले स्त्रोत्र......(या कहीं से जुगाड़ के (रचना या देवेन्द्र जिन्दाबाद))..पक्का........
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इसमें पास देने वाला, गेंद को अपने सीने से रिसीवर के सीने तक लहरा कर बाउंस करते हुए दो तिहाई दूरी तक ले जाता है.गेंद कोर्ट पर गिरती है और रिसीवर की ओर चली जाती है.चेस्ट पास की तुलना में बाउंस पास को पूरा होने में ज़्यादा वक़्त लगता है, लेकिन विरोधी टीम के लिए बीच में रोकना मुश्किल भी होता है (गेंद को जान-बूझ कर किक करना उल्लंघन है).
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इसमें पास देने वाला, गेंद को अपने सीने से रिसीवर के सीने तक लहरा कर बाउंस करते हुए दो तिहाई दूरी तक ले जाता है.गेंद कोर्ट पर गिरती है और रिसीवर की ओर चली जाती है.चेस्ट पास की तुलना में बाउंस पास को पूरा होने में ज़्यादा वक़्त लगता है, लेकिन विरोधी टीम के लिए बीच में रोकना मुश्किल भी होता है (गेंद को जान-बूझ कर किक करना उल्लंघन है).
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वैसे सच कहूँ तो ज्यादातर बातें युनुस भाई, कमलजी और मेरे भाई आलोक भैया के बीच ही चल रही थी....मैं तो यहाँ भी एक श्रोता की भूमिका में ही थी....लेकिन सुनकर भी कितना कुछ सीखा जा सकता है ये बातें उस दिन मुझे समझ में आई....दरअसल जब बातें ही इतनी खुबसूरत चल रही हों तो उन्हें बीच में रोकना तो सब से बड़ा गुनाह है....और उनको देखकर कुछ ऐसा लग रहा था..
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इस साहस के लिए वे साधुवाद के हकदार हैं क् योंकि मैं समझता हूँ समीक्षा के लिए साहस जरूरी है (स् मरण होगा कि पिछले वर्ष एक सेमिनार में आपकी सत्राध् यक्षता में एक प्रोफेसर साहब मंच से अनाप-शनाप बोले जा रहे थे और मजबूरन मुझे उन् हें बीच में रोकना पड़ा था.). वास् तव में अनुवाद के क्षेत्र में इस तरह के ' सेल् फ प्रोक् लेम् ड ' विशेषज्ञ काफी समय से अपना काम चला रहे हैं.