फसल को बीज जनित रोगों के बचाव के लिए थिरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से प्रति किलोग्राम बीज को बुवाई से पहले शोधित करना अति आवश्यक है, बीज शोधन के बाद बीज को 200 ग्राम राईजोवियम कल्चर से 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करके बोना चाहिएI
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तिल की फसल में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है और बीज का शोधन हमारे किसान भाई किस प्रकार करे? एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए तीन से चार किलोग्राम बीज पर्याप्त होता हैI बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2.5 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करना चाहिएI
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बोया जा सके |बीज शोधन: बीज जनित रोग से बचाव के लिए थीरम २ ग्राम या मैकोजेब ३ ग्राम या ४ ग्राम ट्राईकोडरमा अथवा थीरम २ ग्राम +कार्बेन्डाजिम १ ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित करना चाहिए | बीज शोधन कल्चर द्वारा उपचारित करने से पूर्व शोधित करना चाहिए बीज शोधन कल्चर द्वारा उपचरित कने से पूर्व करना चाहिए
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चने की फसल में बीज जनित रोगों के बचाव के लिए बीज को 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मैन्कोजेब या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से एक किलोग्राम बीज को बुवाई से पूर्व बीज शोधन करना अति आवश्यक है, बीज शोधन के पश्चात राइजोबियम कल्चर द्वारा बीजोपचार करना चाहिए, बीजोपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर अच्छी तरह छाया में सुखाकर बुवाई करना चाहिएI
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चने की फसल में बीज जनित रोगों के बचाव के लिए बीज को 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मैन्कोजेब या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से एक किलोग्राम बीज को बुवाई से पूर्व बीज शोधन करना अति आवश्यक है, बीज शोधन के पश्चात राइजोबियम कल्चर द्वारा बीजोपचार करना चाहिए, बीजोपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर अच्छी तरह छाया में सुखाकर बुवाई करना चाहिएI
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फसल सुरक्षा: (१) आवृत कंडुआ रोग की पहचान:बालियों में दानो के स्थान पर फफूदी के काले बीजाणु बन जाते है जो मजबूत झिल्ली से ढके रहते हैं |(२) अनावृत कंडुआ रोग की पहचान:रोगी बालियों में दानो के साथ में काला चूर्ण बन जाता है सफेद रंग की झिल्ली से ढका रहता है | बाद एमिन झिल्ली फट जाती है और फफूदी के असंख्य जीवाणु हवा में फ़ैल जाते हैं |रोकथाम:१. प्रमाणित बीज बोयें २.यह रोग आन्तरिक बीज जनित है अत;
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१. रोग जनक की मात्रा कम करने के लिए गर्मी के दिनों मैं गहरी जुताई, फसल चक्र अपनाना, रोग ग्रसित पौधों के अवशेषों को जलना तथा खरपतवारो को नष्ट करना बहुत जरुरी है | २. अगेती बुवाई अल्टरनेरिया पट्टी झुलसा, सफेद किट्ट व चूर्णिल आसिता आदि रोगों को रोकने में सहायक होती हैं | ३. स्वस्थ व साफ़ सुथरे बीजों का प्रयोग करना चाहिए | बीज जनित रोगों रोगों से सुरक्षा के लिए २. ५ ग्रा म.
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बीजोपचार: बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों से फसल के बचाव के लिए बोने से पहले बीज को दो ग्राम बैविस्टीन प्रति किलोग्राम की दर से शोधित करना चाहिए इसके पश्चात कम से कम आंधे घंटे बाद कीटनाशक दवा इमिडाक्लोपरीड तीन मिलीलीटर या डाइमिथोएट पांच मिलीलीटर की मात्र को 50 मिलीलीटर पानी में घोल बना कर उसे एक किलोग्राम बीज में अच्छी तरह मिलाने के बाद छाया में सुखाकर बोआई करनी चाहिए इससे मृदा में उपस्थित हानिकारक कीटों से बचा जा सकता है.
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(२) अनावृत कंडुआ रोग की पहचान: रोगी बालियों में दानो के साथ में काला चूर्ण बन जाता है सफेद रंग की झिल्ली से ढका रहता है | बाद एमिन झिल्ली फट जाती है और फफूदी के असंख्य जीवाणु हवा में फ़ैल जाते हैं | रोकथाम: १. प्रमाणित बीज बोयें २. यह रोग आन्तरिक बीज जनित है अत ; दैहिक फफूंदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम ५ ० प्रतिशत घुलनशील चूर्ण या कर्बाक्सींन ७ ५ प्रतिशत घुलनशील चूर्ण २ ५ ग्राम प्रति किग्रा.
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बीज को ट्रा इ कोडरमा पाउडर की ४-५ ग्राम मात्रा + कार्बोक्सिन कि एक ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज कि दर से उपचारित करके बुवाई करें | जिससे बीज जनित रोगों तथा मृदा जनित रोगों से प्रारम्भिक अवस्था में फसल को बचाया जा सकता है | ३. मृदु रोमिल असिता एवं चुर्णित आसिता जैसे रोगों से बचाव के लिए फसल के लिये नियमित निगरानी रखनी चाहिए तथा रोग कि शुरुआती अवस्था दिखाई देते ही उचित कवकनाशी का प्रयोग करना चाहिए | चूर्णिल आसिता के प्रबंधन हेतु गंधक चूर्ण कि २.