बीज भाषण सुप्रसिद्ध कवि एवं अनुवादक प्रो. वरयाम सिंह, जेएनयू, ने दिया. प्रो. सिंह ने कहा कि चेखव केवल रूसी लेखक ही नहीं थे, वे अपने समय में ही भौगोलिक सीमाओं को लांघ चुके थे क्योंकि उनकी रचनाओं की विषयवस्तु और उनके पात्र चिरंतन हैं.
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मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. आरसु (कालीकट) ने भारतीय संस्कृति और भारतीयता को बांसुरी के दृष्टांत द्वारा समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार कई सारे छेद मिलकर एक संगीत की सृष्टि करते हैं उसी प्रकार सारी भारतीय भाषाएँ मिलकर भारतीय साहित्य रूपी सरगम का निर्माण करती हैं. प्रो. ऋषभ देव शर्मा (हैदराबाद) ने बीज भाषण में हिंदी के ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकारों की भारतीय चेतना को रेखांकित किया और समय तथा समाज से उनके जुड़ाव को उनकी कालजयी कीर्ति का आधार बताया.