बुद्धिज्म में मुक्ति का अर्थ राग-द्वेष से मुक्ति है-“ भगवान बुद्ध के लिए मुक्ति का मतलब है ‘ निर्वाण ' और ‘ निर्वाण ' का मतलब है राग-द्वेष की आग का बुझ जाना. ”
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अब वह बुझ जाना चाहता है, दीखना नहीं चाहता ; कोई उससे पूछे कि वह क्या करने आया, इसका उत्तर देना तो क्या, यह प्रश्न सुनने का भी साहस उसमें नहीं रहा है-अपने आप में उसका विश्वास टूट गया है।
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आकाश के उस हिस्से के आगे लाइट-हाउस की बत्ती का जलना और बुझ जाना ऐसे लग रहा था जैसे कौंधती बिजली को एक मीनार में बन्द कर दिया गया हो और वह उस क़ैद से छूटने के लिए छटपटा रही हो-उसी तरह जैसे मलमल के आँचल में पकड़े जुगनू छटपटाते हैं।
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सोचता हूँ औरतें क्यों हँसती हैं जब उनके हर बार हँसने से मैना के पर टूटते हैं पिंजरे के लोहे से लड़कर जब उनके खिलखिलाने से कोई दूसरी रोने लगती है औरत जब मर्दों के उजालों में उन्हें रोज बुझ जाना पड़ता है जब जब कि हँसना उनका काम नहीं है ।
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वे मुस्काते फूल नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप नहीं जिनको भाता है बुझ जाना वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आंसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती वे नीलम के मेघ नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह
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मिटने का अधिकार वे मुस्काते फूल नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप नहीं जिनको भाता है बुझ जाना वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आंसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती वे नीलम के मेघ नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह
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क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना घेरे हैं बंदी दीपक को ज्वाला की वेला दीन शलभ भी दीप शिखा से सिर धुन धुन खेला इसको क्षण संताप भोर उसको भी बुझ जाना इसके झुलसे पंख धूम की उसके रेख रही इसमें वह उन्माद न उसमें ज्वाला शेष रही जग इसको चिर तृप्त कहे …
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उल्टे मैंने उनसे फिर पूछ ही लिया, “ तो ताई फिर कभी जहाज में बैठीं कि नहीं तुम? ” उनका चेहरा कायदे में बुझ जाना चाहिए था, लेकिन इसके ठीक उलट वह खिल पड़ा, “ अरे, अब तुझे क्या बताऊँ, जब शादी हुई तो तेरे ताऊ जी ने सबसे पहले तो मेरी नौकरी छुड़वा दी।
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अजा ओ अब लोट कर ये दिल कुछ कह रहा है अजा ओ लोट कर ये दिल कुछ कह रहा है जिस नजर से देखते रहे इस दुनिया को हम, उन आँखों में हमारी कोई पहचान भी ना थी अपने होंठों पर सजा कर तुझे, हम तेरे ही गीत गाना चाहते हैं, जल कर बुझ जाना हमारी किस्मत सही, बस एक बार रोशन होना चाहते हैं......
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लगती है यह बात तो अफसाना उस समय शमा का बुझ जाना जब आधा जला था परवाना रह-रह परवाना कहता है जाने कब जल पाउँगा? यादों के नजराने भी हैं, जख्मों के खजाने भी हैं, आखों के पैमाने भी हैं, लेकिन कौन उठाएगा यह किसके आगे छलकाउंगा? दिल में चोटों का अम्बार लिये, सांसों में मौत का गुबार लिये, हाथों में टूटा सितार लिये, वीराने में ले घायल दिल कब तक उड़ पाउंगा?