बुढ़िया कैसे कह सकती है यह ठीक ही है, या कि दूसरा कुछ बेठीक होता? यही बात तो बेठीक है-बुढ़िया ही बेठीक है!
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बुढ़िया कैसे कह सकती है यह ठीक ही है, या कि दूसरा कुछ बेठीक होता? यही बात तो बेठीक है-बुढ़िया ही बेठीक है!
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एक समर्थवान व्यक्ति को उसके समाज के कुछ लोग बेठीक मानते हैं, कुछ अन्य उसे असामान्य वर्ग में रखते हैं तो कुछ उसे असाधारण समझते हैं.
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मनःज्योति यानी मन ठीक है कि बेठीक, इसे देखने के लिए बुद्धि का प्रकाश चाहिए और बुद्धि के निर्णय सही हैं कि गलत, इसे देखने के लिए जरूरत है आत्मज्योति की।
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प्रचलित मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति के बेठीक, असामान्य अथवा असाधारण समझे जाने में उस व्यक्ति विशेष की भूमिका नगण्य होती है, किन्तु दूसरों के दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.
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किन्तु इन तीन शब्दों के विलोम शब्द-बेठीक (abnormal), असामान्य (uncommon) और असाधारण (एक्स्ट्रा-ordinary), एक दूसरे के पर्याय न होकर बहुत अधिक भिन्न अर्थ रखते हैं.
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बोली: “देख, मैंने तेरे को ठीक कर दिया न! ”बच्चा बोला: “हाँ, अहंकार से हम बेठीक हो गये थे, आपने तमाचा मारकर ठीक ही तो किया माँ! अमंगल तो नहीं किया! मैया रे मैया... प्रभु रे प्रभु... हा हा हा...!”
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पत्रकारिता में अगर तुम अपना दिमाग ठीक रख सकते हो जबकि तुम्हारे चारों ओर सब बेठीक हो रहा हो और लोग दोषी तुम्हे इसके लिए ठहरा रहे हों...अगर तुम अपने उपर विश्वास रख सकते हो जबकि सब लोग तुम पर शक कर रहे हों..
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औरत ने अपने दोनो हाथ अलाव के उपर ले जाकर कहा ‘ हां, तुम्हारी बात ठीक है पर इस आग से सिर्फ ठंठ से बचने के लिये हाथ तापा जाये तो ठीक वर्ना बेठीक, अक्सर लोग इस आग से अपने वजूद को ही जला लेते हैं।
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जब पुरानी रूढ़ियों में हमारा विश्वास टूटने लगता है, पुराना धर्म, पुराना ज्ञान, पुराना दैवी विधान हमें अपने नये विधान के कारण अपर्याप्त और झूठा लगने लगता है, जब हमें पहले-पहल मालूम होता है कि इस अब तक सुव्यवस्थित जान पड़नेवाले विश्व में कुछ अव्यवस्थित, बेठीक भी है, तब हम उसे पाप कहते हैं ;