टेक्सास, 20 जुलाई (आईएएनएस)। नर चमगादड़ पशु-पक्षियों की दुनिया में सबसे रुमानी गायक होते हैं। वे मादा चमगादड़ को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खास तरह का स्वर निकालते हैं और अपने स्वर बदलकर मादा चमगादड़ के मनोरंजन के लिए ब्यूह रचते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
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श्री जोगी के इन झटकों से भाजपा सन 2003 के पहले विधानसभा में उभरी ही थी कि श्री जोगी ने दूसरे बड़े दल बदल के लिए 45 लाख रुपए की कथित रिश्वत वीरेन्द्र पाण्डेय को देकर बड़े खेल की ब्यूह रचना रची लेकिन केन्द्र में भाजपा सरकार होने की वजह से वे गच्चा खा गए।
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दो-तीन दशकों से भी अधिक समय से प्रदेश की सियासत में सक्रिय नेताओं के पुत्र अब राजनीति का ककहरा सीख चुके हैं और इस चुनाव में उन्होंने पिता को सिर्फ प्रचार तक सीमित कर दिया शेष सारे चुनावी सूत्र अपने हाथ में रख कर न सिर्फ चुनावी ब्यूह रचना की बल्कि सफलता से उसका संचालन भी किया।
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प्रस्तुति, गजाधर रजक, गोरेलाल गुप्त (विधायक प्रतिनिधि) ००० छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर अंचल के चर्चित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एम.पी. चन्द्राकर से बातचीत साक्षात्कारकर्त्ता: डी.पी. देशमुख # आम तौर पर वासुदेव चन्द्राकर जी को छत्तीसगढ़ राजनीति का चाणक्य कहा जाता है, आप किसी हद तक सहमत हैं? डॉ. चन्द्राकर: परिस्थितियों का पूर्वानुमान उसके अनुरुप ब्यूह रचना और फिर वांछित सफलता प्राप्त् करने में उन्हें महारथ हासिल है।
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यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि आजमगढ़ के प्रति पहले भाजपा के कलराज मिश्र एवं राजनाथ सिंह के दिलों में उमड़े प्रेम के कारण जहां दोनों में कड़वाहट एवं आपसी टकराव बढ़ गया वहीं जब आजमगढ़ के प्रति मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी सहृदय हो उठे तो कलराज-राजनाथ न सिर्फ एक हो गए बल्कि भाजपा के उक्त दोनों कथित दिग्गजों ने संयुक्त प्रयास से ऐसी ब्यूह रचना कर डाली कि अन्ततः कल्याण सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता ही देखना पड़ गया।
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यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि आजमगढ़ के प्रति पहले भाजपा के कलराज मिश्र एवं राजनाथ सिंह के दिलों में उमड़े प्रेम के कारण जहां दोनों में कड़वाहट एवं आपसी टकराव बढ़ गया वहीं जब आजमगढ़ के प्रति मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी सहृदय हो उठे तो कलराज-राजनाथ न सिर्फ एक हो गए बल्कि भाजपा के उक्त दोनों कथित दिग्गजों ने संयुक्त प्रयास से ऐसी ब्यूह रचना कर डाली कि अन्ततः कल्याण सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता ही देखना पड़ गया।
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तूने तूने ही तो जाया है न मुझको फिर क्यों नहीं है रंग मेरा तेरी देह जैसा तेरे इस शरीर के भीतर बहुत भीतर नहीं है न कहीं मेरे ही रंग रस जैसा रचा तन फिर उस देह पर यह पीली सिर्फ पीली देह क्यों है मां और मैं भी अपना होना जान लेने से अभी तक एक मुर्दा व्यूह में ही क्यों जिये हूँ जबकि मैंने तो सीखा ही नहीं तेरी कूख में रहते किसी भी ब्यूह में जा धंसने का सबक फिर कौन हैं वे रच गए हैं व्यूह दर व्यूह चारों ओर मेरे