कुकुरमुत्तों, धतूरे के फूलों, भटकटैया को जमा कर रहा है, चींटियों की सेना खड़ा कर रहा है।
32.
कण्टकारि द्वयम् ” किसी वैध्य ने भटकटैया (छोटी बड़ी) के स्थान पर कण्टकारी (जूता) का काढ़ा तैयार किया।
33.
भटकटैया के 14-28 मिलीलीटर काढ़े को 3 बार कालीमिर्च के चूर्ण के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
34.
भटकटैया बड़ी के फल, कटु, तिक्त, छोटे, खुजली को नष्ट करने वाले, कोढ़(कुष्ठ), कीड़े, बलगम तथा गैस को खत्म करने वाले होते हैं।
35.
भटकटैया (कंटकारि, कंटकारिका), जीरा और आँवले का चूर्ण सम भाग में लेकर शहद में मिलाकर चाटने से श्वास रोग में शीघ्र लाभ होता है।
36.
गुण: भटकटैया तीखी, पाचनशक्तिवर्द्धक और सूजन-नाशक है तथा यह उदर रोगों (पेट के रोगों) को भी दूर करता है।
37.
अपनी रैगिंग के समय फूल की तरह कुम्हला जाने वाले लोग साल बीतते-बीतते जूनियर्स के स्वागत के लिये भटकटैया की तरह तत्पर हो जाते।
38.
क भी-कभी सोचता हूं कि आज के दौर में कबीर होते तो क्या होता? कबीर जीवन भर सत्ताओं की आंखों में भटकटैया की तरह गड़ते रहे।
39.
लड़की के हाथ में एक और भटकटैया का फूल थमाया उसने, शीशे पर नज़र गई तो देखा उसका खुद का गला नीला-नीला सा हो रहा था।
40.
लोक में इसके लिए भटकटैया, कटेरी, रेंगनी अथवा रिंगिणी; संस्कृत साहित्य में कंटकारी, निदग्धिका, क्षुद्रा तथा व्याघ्री आदि; और वैज्ञानिक पद्धति में, सोलेनेसी कुल के अंतर्गत, सोलेनम ज़ैंथोकार्पम (