असुरों के उत्पात से त्रस्त ऋषियों की रक्षा के क्रम से शंकर ने अपने तीन फलवाले बाण से असुरों की विख्यात तीनों पुरियों को बेध दिया तथा अग्निदेव ने उन्हें भस्म करना आरंभ किया तो इसने पूजा से शंकर को अनुकूल कर अपनी राजधानी बचा ली थी (मत्स्य., 187-88; ह.पु., 2/116-28; पद्म., स्व., 14-15)।
32.
राजा कुंवर प्रताप देव पंडितों के कहने पर बारिश के लिए महायज्ञ कराने और उसमे भारी मात्रा में अनाज और घी की आहुति देने का सुझाव मान लेते हैं, लेकिन विशाल देव अपने बड़े भाई के इस फैसले पर यह कह कर आपत्ति करते हैं कि यज्ञ के नाम पर भारी मात्रा में अनाजऔर घी भस्म करना ठीक नही है.