कुछ हवेलियों के चौकों तथा कमरों में भी कलात्मक भित्ति-चित्र हैं जो ठीक संरक्षण न होने के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं।
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अपने विशाल आकार-प्रकार और रूप-रेखा की दृष्टि से, इन ३४ एकाश्मिक गुफा मन्दिरों की स्थापत्य कला और इनके भित्ति-चित्र सचमुच ही अद्भुत और रोमांचकारी हैं।
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यह चित्रवल्लरी दरवाजों पर दूसरे भित्ति-चित्र के बीच के स्थान तथा रंगमंडप की दीवार पर स्थान को भरती है जिसमें दरवाजों की चौखट घुसाई जाती है।
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डूंगरपुर के प्राचीन राजप्रसादों मेंप्राप्य भित्ति-चित्रों में महारावल उदयसिंह जी द्वारा बनवाये गये अनेकचित्र चित्रित हैं जिनमें से एक विशाल भित्ति-चित्र `माण्डव की पाल परचढ़ाई ' चित्रित है.
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किसी समय महम चौबीसी के निंदाणा गांव में ब्राह्मणों तथा जाटों की चौपालों में बहुत बड़ी संख्या में भित्ति-चित्र थे, जो अब लुप्त हो गए हैं।
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उसकी जीवनी एक भित्ति-चित्र की तरह नहीं, बल्कि एक मोज़ेक की तरह ही तैयार की जा सकती है, क्योंकि दूधनाथ को सिर्फ़ दूधनाथ ही जानता है।
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भित्ति-चित्र-जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन उदाहरण हमें तामिल प्रदेश के तंजोर के समीप सित्तन्नवासल की उस गुफा में मिलते हैं जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
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इसी संदर्भ में श्री रणबीर सिंह का कथन है:-” हरियाणा में किसी भी प्रकार के भवन पर यूं ही मनमाने ढंग से भित्ति-चित्र नहीं बनाये गए।
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उनका काव्यत्व अतिपरिचित विवरणों से कई बार, और कई बार तो सहज बहते जीवन रस से किसी उदग्र प्रति-विवरण और भित्ति-चित्र की तरह आलोकित हो जाता है.
40.
चटटानों पर भित्ति-चित्र खुदवाए जाते, शिलाओं पर अपनी प्रशंसा उत्कीर्ण की जाती और राजा इहलोक तथा परलोक के बीच दलालों द्वारा उफपर वाले का प्रतिनिध् घ्ाोषित कर दिया जाता।