यहॉ पर मेरा प्रयास हिंदी भाषा के व्यक्तव्यों का प्रस्तुतीकरण नहीं है बल्कि कोशिश है हिंदी भाषा की इन दो विरोधी मानसिकता के विश्लेषण का, जिसमें एक ओर भारत देश के कुछ लोगों का भय है तो दूसरी ओर भूमंडलीय स्तर पर उस भय का निराकरण भी उपलब्ध है।
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शायद कुछ लोगों की भृकुटियॉ ऐसी भाषा सुनकर तन जाए और श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी या डॉ. रघुवीर की आत्मा भाषा शुद्धता की मुनादी फिर से शुरू कर दें पर सच तो यह है कि हिंदी बिगड़ नहीं रही है बल्कि भूमंडलीय स्तर पर अपने को विभिन्न रूपों में सजा-सँवार रही है।
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बेशक भूमंडलीय स्तर पर फेसबुक और ट्वीटर और कई अन्य सोसल नेट्वर्किंग वेब-साइट्स ने दुनिया भए के भूले बिसरे लोगों को मिलाया है लेकिन एक ताज़ा अमरीकी सर्व कि माने तो अमरीका में हर पांचवें तलाक के पीछे फेसबुकजैसी वेब-साइटों का हाथ नजर आ रहा है जिसे अब एक साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है ।