पंकज बिष्ट के अनुसार, “नागार्जुन ग्रामीण सभ्यता के साक्षात प्रतिमूर्ति थे, जाड़ों में खादी का बंद गले का भूरा सा गर्म कोट, गमछे में लपेटे कानों के ऊपर कनटोपा और बगल में महीने भर पहले का ध्ुला शांति निकेतनी थैला।
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मुझे लगा रामी छप्पर के ऊपर खड़ी है-वैसा ही भूरा सा लँहगा, मटमैली ओढ़नी, वही सफ़ेद बाल झुर्रियों से भरा चेहरा ; सब कुछ वैसा ही था! ओढ़नी से दोनो हाथ ढँके काँपती-सी आकृति! वही तो रामी है-हमारी चौका-बर्तनवाली रामी! वह उस छप्पर से उतर कर सड़क पर जा रही है, और बिजली के खम्बे पास कमर झुकाये खड़ी हो गई है ।
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बायीं ओर से फैलती छाया 00: १७ पर ००:३७ पर लगभग १:१५ पर चाँद नहीं दिखा १:२५ दाहिनी ओर से बढते प्रकाश में चाँद कभी हल्का भूरा सा दिखता था| फिर दो बजे चाँद नहीं दिखा और शायद उसके बाद गहरा ग्रहण लगा हो| सभी तस्वीरें मेरी खींची-डॉ नूतन डिमरी गैरोला शटर १/४००० से १/२०० ============================================================================== नाईटमोड में खींची फोटों सभी तस्वीरें मेरी खींची-डॉ नूतन डिमरी गैरोला क्या भटका रहे हैं बाबा और अन्ना-जागो भारत जागो
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साँसें घुटती हुई सी लग रही थीं … धड़कनें थमी सी महसूस हो रही थीं … सीटी बजाने के आकार में सुकड़ा हुआ भूरा सा गुदाद्वार किसी खिले हुए जासबन फूल सा लग रहा था … उसके कुछ आधे इंच नीचे भूरे-भूरे रेशमी झाँटों के झुरमुट में जो दिखाई दे रहा था … वो ऐसा लग रहा था जैसे शशि के सेक्सी होंठों को किसी ने वर्टिकल कर दिया हो … थोड़ा गुलाबी … थोड़ा बादामी … ऐसा कुछ रंग था उन होंठों के बीच …